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कौन जनक रहे  रघुराई

कौन जनक रहे  रघुराई, कौन रही थी वो कौशल्या माई,
जानना है तो सब भज लीजिए, वेद पुराण सनातन भाई।।

इक्ष्वाकु कुल के राजा रघु भए, इंदुमति के पुत्र थे जाई,
कौशल्या प्रथम रही भार्या जो ,शांता जिससे थी पुत्री पाई।।

पूर्व जन्म के थे हुए मनु जो,वो थे रहे नेमि अब बन आई,
और रही थी जो शतरूपा तब वह,आन बनी कौशल्या वो माई।।

सतयुग को प्रगट भए,मनु जो थे,दशरथ त्रेता मे वह बन आई,,
शतरूपा मनु संग किन्ही तपस्या ,तब, वह राम को संतान सुत पाई।।

रही है न विचित्र सब बाते ,ऊर्जा है सत्य की जो चली आई,
यही तो विज्ञान ज्ञान की बाते,  जो है वेद पुराण सब गाई।।

कहे जो जीत लिए था दस मन,वही तो नेमि दशरथ कहलाई,
कथा और भी विचित्र कहे है,समझना है तो लिए ध्यान लगाई।।

हुआ था युद्ध सुर असुरन मे,हारे देव तो गुहार नेमि लगाई,
चल दिए रथ वह अपना सजाकर  शंभरा असुर को थी धूल चटाई।।

लिए था वह दस रूप आप मे, और दसो दिशाओं मे त्राहि मचाई,
जिस युद्ध कीन्हा वही बींध दीन्हा, दसों दिशाओं मे नेमि वो जाई।।

तभी तो दशरथ नाम था दीन्हा ,जब दस रथ संग युद्ध था दिए जिताई,
वह भी अलग अलग गति से ,और अलग अलग ही दिशा सजाई।।

विजयी रहे थे हर रण कौशल मे ,नेमि राजा जो दशरथ थे कहाई,
शनिदेव तक को दी थी पटखनी, ताकि न रोहिणी नक्षत्र मे आई।।

क्या क्या बल की बात करे नेमि,क्या क्या दशरथ की करे बढाई,
जीवन था वरदान व श्रापित , जिसके खातिर वह भूलोक आई,।।

पुत्र वियोग का शाप लिए थे, जब श्रवण की थी देह उत मिटाई,
दुखद संताप मात पीता ने दीन्हा,दिया था शाप तब नेमि को जाई।।

तप था कीन्हा जब भए थे मनु वे,विष्णु को पुत्र रूप मांगे थे भाई,
प्रारब्ध है बलवान होनी का होना,होनी ही है जो यह जीवन है भाई।।

दशरथ रहे थे अति भाग्य शाली,तभी तो राम को बाल रूप पाई,
कौशल्या रही थी शतरूपा जो,वही तो राम की जननी कहाई।।

फलित हुए वरदान दोन्हों ही ,जो दशरथ, कौशल्या संग थे पाई,
श्राप भी स्वीकार किया दशरथ ने, जो पाए थे,श्रवण की देह मिटाई।।

सब कर्मन के फल है जीम्हें, जो भी इस भू लोक है आई,
कोई भी कर्म बिन फल नही है,ध्यान सो रखना सरल समझाई।।

करो शुभ कर्मन फल की भी खातिर, छोड़े न पीछा चाहे चाहो चली जाई,
देव सुदेव या दानव रहे हो ,पाते है फल यहा गति तस पाई।।

दशरथ की गाथा,मनोहारी बातां,चाहे जितनी भी बार जाए सुनाई,
रस है भक्ति का सकल शक्ति का,हर घटना कथा आप ही बनाई।।

बात हो सीता के तृण खाद्य मे,जो सीता ने दृष्टि से दिए जलाई,
चाहे हो अग्नि परीक्षा मात सीता,जो स्वर्ग से चले थे वह आई।।

दशरथ दस मन काबू किए थे,सो ही तो वह दशरथ नाम थे पाई,
सरल कहे अब क्या ही निज मन को,जो दशरथ की कथा दी है सब सुनाई।।

संदीप शर्मा सरल।।
देहरादून उत्तराखंड ।।

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