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‘साहित्य का विश्व रंग’ आयोजन सम्पन्न।

प्रवासी भारतीय, स्थानीय सभ्यता और संस्कृति को सामने लाएँ – संतोष चौबे

विश्वरंग, हालैण्ड से साझा संसार फाऊण्डेशन, वनमाली सृजनपीठ, प्रवासी भारतीय साहित्य शोध केंद्र व टैगोर अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी केंद्र के तत्वावधान में ‘साहित्य का विश्वरंग’ का ऑनलाइन आयोजन, विश्वरंग निदेशक एवं रवीन्द्र नाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री संतोष चौबे की अध्यक्षता व वरिष्ठ कवि एवं विश्वरंग के सह निदेशक श्री लीलाधर मंडलोई के सान्निध्य में, सम्पन्न हुआ।
श्री चौबे ने अपने अन्तर्राष्ट्रीय भ्रमण के अनुभव की बहुत सारी बातों को श्रोताओं से साझा किया। उन्होंने कहा कि प्रवासी भारतीय, वहाँ की स्थानीय सभ्यता और संस्कृति को सामने लाएँ। कथेतर में साझा संसार बहुत बड़ा काम कर रहा है।
इस आयोजन में इण्डोनेशिया से वैशाली रस्तोगी, अमेरिका से शुभ्रा ओझा, कतर से विनीता कंवर राठौड़, नीदरलैंड्स से पल्लवी रस्तोगी व भारत से वरिष्ठ साहित्यकार सुभाष राय ने भाग लिया।
आयोजक व साझा संसार फाउण्डेशन के अध्यक्ष रामा तक्षक ने अपने स्वागत वक्तव्य में कहा कि प्रवासी भारतीय रचनाकारों को नॉस्टेल्जिया की पकड़ से बाहर आना होगा। उन्हें प्रवास के अपने स्थानीय सामाजिक जीवन, नदी, पहाड़, पठार, रेगिस्तान, जंगल जगत और प्रकृति को अपने सृजन में लाना होगा। ताकि भारतीय साहित्य को समृद्ध बनाया जा सके। ‘साहित्य का विश्वरंग’ आयोजन का यही उद्देश्य है।
पल्लवी रस्तोगी ने टुलिप फूल की यात्रा ‘टर्बन से टुलिप’ शीर्षक, शुभ्रा ओझा ने अमेरिकी शिक्षा व्यवस्था के अहम पहलू ‘सब्स्टीट्यूट टीचर’ शीर्षक, विनीता कंवर राठौड़ ने ‘कतर देश की जानकारी’ शीर्षक, वैशाली रस्तोगी ने ‘थाईलैंड और इण्डोनेशिया’ पर संस्मरण व सुभाष राय ने दक्षिण भारत की ‘कवयित्री आंडाल’ की श्रंगार रस की कविताओं के अंश सुनाए।
श्री लीलाधर मंडलोई ने सभी रचनाओं पर विस्तार से चर्चा की और बताया कि साझा संसार रूपी खिड़की के माध्यम से विश्व भर से बयार आती है। इस आयोजन के माध्यम से पिछले पांच बरसों के प्रयास से हम सबकी संकल्पना यथार्थ हो रही है।
इस आयोजन का सफल मंच संचालन नीदरलैंड्स से मनीष पाण्डेय ने किया।

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