
भीषण गर्मी महीना,तन से चुए पसीना,
चले तेज पुरवाई, व्यथित संसार है।
सूखी तरुवर डाली,बोले न कोयल काली,
तप रहा तन मन,आतप अपार है।
सूख गए नदी ताल,मानव का बुरा हाल,
किसी को सर्दी जुखाम,किसी को बुखार है।
बदली रवि ने चाल,जीव जगत बेहाल,
बहुत ही कष्टकारी, सूरज की मार है।।
गोरी काया हुई काली,दिखे नहीं हरियाली,
लगता है रूठ गई,बरखा बहार है।
पड़ी भानु ऐसी ऐंड़,सूखे पौधे खेत मेंड़,
उड़ रही चहुँ ओर,धूल भरमार है।
लगे तन जोर प्यास,मन रहता उदास,
चढ़ा हर एक अंग, रोगों का खुमार है।
रवि फेंक रहा आग,काम न करे दिमाग,
लग रहा पारा जैसे, पैंसठ के पार है।।
स्वरचित रचना-राम जी तिवारी"राम"
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)