
प्रजा पर तंत्र हावी है,
फिर ये कैसी आजादी है!
जहां भी जाओ देखोगे,
रिश्वतखोरों कि वादी है!!
गरीबी और बेकारी,
गई ना बेईमानी ही!
प्रजा को लूटते हैं सब,
मंत्री और अधिकारी ही!!
जहां जाओ वही देखो,
इन्हीं का वर्चस्व जारी है!
कहीं दिखती नहीं है ये,
प्रजा तो बस बिचारी है!!
प्रजा क्या है नहीं मालूम,
इसको, यही लाचारी है!
करें क्या हम सभी अब तो,
समझने की ये बारी है !!
अगर जग जाएं हम सब तो,
दिखाएं गर समझदारी!
मंत्री और तंत्री करेंगे चाकरी,
निभायेंगे वफादारी!!
चुनें हम अच्छे सच्चे और ,
सक्षम योग्य लोगों को!
मिटा दें जाती धर्म मजहब
की दीवारों को!!
लगेगा अंकुश व्वस्था पर,
मिटेगी बदहाली !
तभी होगी तरक्की और
आएगी खुशहाली!!
तभी होगा प्रजातंत्र “जिज्ञासु”
तभी मिलेगी सच्ची आजादी!
कमलेश विष्णु सिंह “जिज्ञासु”