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फूलों का भौरा

इस दुनियां में आने वाले
जल्दी लौटकर जाने वाले
इतना करते क्यों तुम नाज
अच्छे काम करो तुम जग में
लोग करेगे तुम्हें सदा याद

काला भौरा इतराता ज्यादा
फूलों पर मंडराता कतराता
एक फूल का रस नहीं भाता
पीता रस वह फूल फूल का
हर्षित होकर ऊंचा उड जाता

प्रकृति देखती रही अकड़ सब
दिया उसे उडने का सुअवसर
उडता रहा गगन में तनकर
भ्रकुटी तानी घमंड में भरकर
दम जितना था पूरा भर कर

आंधी आयी और पानी आया
भौरे का सब उत्साह मिटाया
दिल उसका ज्यादा घबराया
धरती मां की गोद थी प्यारी
भौरा गिरा अवनि ओह! माई

डाँ. कृष्ण कान्त भट्ट
सेन्ट विन्सेंट पल्लोटी कालेज बेंगलूरु कर्नाटक

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