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“कुछ ऐसा हो जाए”

क्यों ? ना कुछ ऐसी पहल की जाए।
हैं, जो दीन-हीन और बेसहारा,
उनकी बेहतरी का छोटा प्रयास ही सही,
क्यों ? ना ऐसा प्रयास किया जाए‌।

हैं, भूख से बेहाल जो नौनिहाल..
उनको.. निवाला खिलाया जाए।
गुम हुई ..उनकी मुस्कानों को,
क्यों ? ना फिर लौटाया जाए।

ठिठुरन से सिकुड़ते उस बदन को,
क्यों ? ना थोड़ा सा ढकाया जाए।
गर्माहट ….कंबलों की ना सही,
क्यों ? ना एक अलाव जलाया जाए।

सोच कर देखें सभी…नए सिरे से,
हर जरूरतमंद के लिए थोड़ा ही सही
कुछ बेहतरी के कदम उठाए जाएं।
क्यों ? ‌ना कुछ नया करके देखा जाए।

उर्मिला ढौंडियाल “उर्मि”
देहरादून ( उत्तराखंड)

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