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कविता

फ़ैसला सुन सरल हाथ मे होता नही है कुछ कोई,
बन जाती परिस्थितियां वैसी, और कर सकता न कुछ गोई ।।

कहते है बहुत समय सही पर लिया फ़ैसला ज्यो ही,
पाई सफलता और विफलता, कर्मन का सब होई।।

रहता जरूर गर्व,पछतावा,स्थिति रहती सुख दुख की ज्यो ही,
सब कुछ हाथ लकीरों के,कर सकता फकीर न कुछ कोई।।

होना था जब ब्याह सिया से,आया था रावण भी त्यो ही,
पर रचा विधि ने राम का संग था,क्या करता ,निर्मोही।।

उधर तिलक होना था,राम का,फ़ैसला वन का होई,
चल दिए पहन वल्कल तब ही,माथ शिकन न कोई।।

जानती युगों युगों की बातें ,मानती दुनिया न कोई,
सब सीख रीत हाथ विधि के,फ़ैसला तुम पे न कोई।।

प्रश्न एक था करता विकल सा, क्या याद न आया वो ही,
जब सब कुछ मंगल ही मंगल था,फिर राम सिय क्यू विलग होई ।।

क्यू चल दिए वन गमन को,जब राज योग था होई,
और क्यू संताप, चुगे जीवन भर,और राम सिय के रहे वो ही।।

तो यह फ़ैसला भी था विधि का,और थी जानती तो वो ही,
थी न शिकायत कोई दोऊं की, समर्पित थे दौऊं वो, ही।।

हाँ लगता जरूर है ऐसा कि कर लेता जो वो ही ,
हो सकता हो जाता वैसा,चाहा जो गलत कुछ हो ही।।

पर देखना और समझना, क्या फ़ैसला आप का हो ही,
भ्रम और भ्रम नही और कुछ, फ़ैसला विधि ऋण होई।।

संदीप शर्मा सरल
देहरादून उत्तराखंड

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