
पावन पर्व शारदीय नवरात्रि की,
दिल की कुछ बात सबको बताती हूं।
मन नहीं दिल हार के बैठी हूं,
सच कहूं मां आपसे प्यार कर बैठी हूं।
झूठे वादें, कसमें सब तोड़ बैठी,
जीवन में सबसे आंखें चार कर बैठी।
तेरी ममता का न कोई मोल है,
सच्चे भक्तों का करती तू तोल हैं।
कठिन घड़ी में देती तू साथ हैं,
मां मेरी देती तू छप्पर फाड़ के हैं।
बच्चों को कभी टूटने नहीं देती,
प्यार, करुणा, दया से हमें संभाल लेती।
कैसी तेरी शक्ति अपार हैं,
हे शैलीपुत्री, ब्रह्मचारिणी करती बेड़ा पार हैं।
हे जगदम्बे, मात भवानी, बन्नी माई,
तेरे दरबार से कोई खाली हाथ नहीं आई।
दीन, दुखियों की परीक्षा तू लेती,
अपने बल से पल-पल उन्हें तार देती।
नवरात्रि में ‘बोल अंबे मात की जय’,
पावन पर्व पर नारा गूंज उठे जग सारा।
जयकारा तेरे दर पे जोर से लगता है,
प्यारे भक्त तेरे झूमके, नाच उठते हैं।
ज्ञान दायिनी, पालन करनी,
रक्षा करसी, सुख-शांति दायिनी।
कवयित्री- दुर्वा दुर्गेश वारीक ‘गोदावरी’ गोवा