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भगवान शिव का नाम पशुपतिनाथ कैसे पड़ा


“ओम अघोराय नमः।।
ओम तत्पुरुषाय नमः।।
ओम ईशानाय नमः।।
ओम ह्वीं ह्वौं नमः शिवाय।।”
हम सभी भगवान शिव को कई नामों से जानते हैं जैसे कि-भोलेनाथ ,बम भोले, नीलकंठ, शंकर , हर हर महादेव और पशुपतिनाथ आदि। भगवान शिव के हर एक नाम के साथ किस कहानी भी जुड़ी हुई है। दरअसल ,नेपाल में एक मंदिर स्थित है। जिसे पशुपति नाथ मंदिर कहां जाता है। इस पशुपति नाथ मंदिर में शिवलिंग स्थापित है। ऐसी मानता है कि यहां विराजमान शिव के इस रुप को ज्ञान प्राप्ति के स्मारक के रूप में स्थापित किया गया था, जोकि पशुपत कहलाते हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव पशुपत थे और इसके बाद उन्होंने इस से आगे बढ़ने की कोशिश की और फिर वह पशुपति बन
गए। यही नहीं, जानवरों की प्रकृति के स्वामी भी बन गए और वह जानवरों की स्वाभाविक बाध्यताओं से मुक्त हो ग‌ए। भगवान शिव को जीवन के सभी क्षेत्रों में बहुत संयमी कहा जाता है। भगवान शिव का वज्र सबसे शक्तिशाली है, वह वज्र को शिव निरीह पशु -पक्षियों को बचाने के लिए और मानवता विरोधी व्यक्तियों के विरुद्ध व्यवहार में लाते थे। भगवान शिव बहुत ही शांत प्रवृत्ति के भी कहे जाते हैं, इसलिए तो वह अपने अस्त्रों का उपयोग बहुत कम ही किया करते थे।
भगवान शिव ने अच्छे लोगों के विरुद्ध अस्त्र का व्यवहार कभी नहीं किया। वहीं, जब भी मनुष्य या फिर कोई जीव-जंतु अपना दुःख लेकर भगवान शिव के पास गए, भगवान शिव ने उन्हें आश्रय अवश्य दिया और सत्य पथ पर चलने का परामर्श दिया।
दूसरी और जिन्होंने भगवान शिव पर क्रोध कर अपने स्वार्थ को पूरा करने का विचार किया उन पर भगवान शिव ने अपने अस्त्र चलाए।
ऐसा मानना जाता है कि भगवान
शिव का यह अस्त्र मात्र ही कल्याणार्थ
है, किसी कारण से ‘शुभ बज्र’भी कहा गया है। यह सत्य है कि मनुष्य के समान पशुओं के प्रति भी शिव के ह्रदय में बहुत वात्सल्य था और इसी कारण उन्हें पशुपति नाम मिला। समस्त संसार उन्हें पशुपति नाथ के नाम से पुकारने लगे।

डॉ मीना कुमारी परिहार

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