
समय भी नहीं रुकता,
युग बीता जाता
हौसला है टूटता।
हिम्मत हारे स्त्रीमन
ढूंढती है दिन-दिन
पथ, होकर के उन्मन।
जब भी पंख फैलाये
असुर सम्मुख आये,
लहू लुहान कर जाए।
ढ़ाढस आश्वासन मिला,
साहस किधर मिला??
नर रूप दुर्जन मिला!!
चाहा था सुदृढ़ ज्ञान,
एक मुट्ठी आसमान,
मजबूत मन और उड़ान!!
सुलेखा चटर्जी