
आंगन की धूप,
तुलसीचौरा लगा आंगन,
आंगन की वह सुहानी धूप,
वो स्वर्णिम रूप!!!
कंक्रीट के जंगल
बीच,यह है स्वप्न स्वरूप।
आंगन की धूप!!!
आंखें मीचे सोचो,
दाना चुगती गौरैया, उड़ती तितली,
ऊंघती दादी चुप —-
बड़ीयाँ डालती माँ,
चींटीधप, पिट्टू, खेल सब गुमा।
कहां गई धूप???
फिर वापस आए,
दुनिया में छाए --वही धूप,
आंगन की धूप!!!
सुलेखा चटर्जी