
मैं नेता पर नहीं लिखता,
और ‘अभी नेता’ पर तो बिल्कुल नहीं।
देश पर भी कलम नहीं उठती,
क्योंकि नेता ही तो देश चलाते हैं,
और ‘अभी नेता’—
वही देश के खिलाफ बोल जाते हैं।
देश तो बस बेचारी गाय है,
जिसे सभी दुहते हैं,
पर कोई उसका दुःख नहीं सहता।
अब किस पर लिखूं?
किसान परेशान हैं,
जनता शर्मसार है,
नेता—बस, वे तो खुशहाल हैं।
स्त्री पर भी नहीं लिखता मैं,
उसकी व्यथा को अब कोई नहीं समझता।
पशु, पक्षी, जीव, जंतु—
सबका है बुरा हाल,
क्योंकि चारों ओर
नेता जी का बोलबाला है,
और सन्नाटा है हर सवाल का।
आर एस लॉस्टम
लखनऊ