
।। ऋषियों की प्रेरणा से हमसभी आध्यात्मिक साधना से स्वयं ऊर्जावान हों, समाज को ऊर्जावान बनाएं कल्याण करें ।।
जिस प्रकार सूर्य की किरण में, जलाने की शक्ति होने पर भी जहाँ-तहाँ वह शक्ति नही जला सकतीं,
परन्तु उत्तल दर्पण {आतिशी शीशे}
के द्वारा आकृष्ट होकर, जहाँ पर वह शक्ति केन्द्रीभूत की जाती है,
{सूर्य की किरण रश्मियों को जिस बिन्दु पर डाला जाता है}
वहाँ पर ही वस्तु को जलाती है ।।
उसी प्रकार मन्त्र में शक्ति होने पर भी वह शक्ति मन्त्र में साधारण रूप से व्याप्त रहती है,
पर जिस वस्तु पर लक्ष्य करके अन्तःकरण की एकाग्रता और प्राणशक्ति के द्वारा–
वही मन्त्र— अस्त्र की सहायता से प्रयुक्त होता है, वहीं उसको जलाना, मार देना, मुग्ध कर देना, वशीकरण आदि अद्भुत क्रियाओं को कर सकता है ।।
प्रत्येक मन्त्र की सिद्धि,
साध्य वस्तु पर,
भावशक्ति के द्वारा केन्द्रीकरण {फोकस} होने से, ही हो सकती है, जहाँ-तहाँ नहीं हो सकती ।।
जिस साधक के अन्तःकरण में भावशक्ति तथा प्राणशक्ति की जितनी प्रबलता होगी,
मन्त्रों के द्वारा अस्त्रप्रयोग, मन्त्रसाधन द्वारा आसुरी शक्ति तथा देवताओं का वशीकरण और श्रीभगवान् तक की, प्रसन्नता-प्राप्ति वह उतना ही कर सकेगा ।।
आध्यात्मिक साधना के लिए जप तथा प्रणायाम अनिवार्य है ।
निश्चित समय पर, निश्चित समय तक अपने इष्ट का जप व प्राणायाम करने पर स्मृति व शरीर दोनों निर्मल होने से आध्यात्मिक सिद्धि प्राप्त होती है ।।
मन एवं शरीर का एक दूसरे पर अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है । इन दोनों को ठीक रखने के लिए {मंत्रोंके जापकेसाथ ध्यान} और {प्राणायामके साथभी ध्यान करें} और ऋषियों के दिए हुए पद्धति से इस प्रकृति का पूर्ण लाभ प्राप्त करें ।।
गीताप्रेस गोरखपुरद्वारा प्रकाशित पुस्तक “पतंजलि योग सूत्र” पतंजलि ऋषि के द्वारा लिखा गया योगसूत्र अवश्य पढ़ें—
लेख—
पं. बलराम शरण शुक्ल
नवोदयनगर हरिद्वार ।