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स्नेह सुधा बरसाने वाली


मनका मंदिर है खाली,
दिल का सिंहासन भी खाली !
तरुणी कहाँ छुपी जा बैठी,
स्नेह सुधा बरसाने वाली !!

मन को तुम भरमाने वाली,
दिल को भी तरसाने वाली !
चंचल चितवन से तुम अपने,
अनुपम नाच नचाने वाली !!

तरुणी कहाँ छुपी जा बैठी,
स्नेह सुधा बरसाने वाली !

ओठ गुलाबी आँखे काली,
लट घुंघराले अदा निराली !
चंचल चित्त है चाल मनोहर,
अंतस्तल हुलसाने वाली !!

तरुणी कहां छुपी जा बैठी,
स्नेह सुधा बरसाने वाली!

अधर मधुर है भौहें आली,
गोरे तन की छटा निराली !
श्याम केश आंचल सतरंगी,
अनुपम तेरी अदा निराली !!

तरुणी कहां छुपी जा बैठी
स्नेह सुधा बरसाने वाली!

मन हर्षित तन पुलकित कर दे,
स्मृति तेरी बड़ी निराली !
तरुणी कहां छुपी जा बैठी,
स्नेह सुधा बरसाने वाली !!

कमलेश विष्णु सिंह ‘जिज्ञासु’

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