
तुम्हारे पाँवों का महावर मुझे बुला रहा है शायद, यह बुलाने की तरकीब अच्छी है तुम्हारी।।
तुम रचती मेहन्दी हाथों मे,पहन बनारसी साथ साड़ी, पायल की खनखनाहट, क्या अदा है तुम्हारी।।
गूंथे बालो मे गजरा, नयनो मे काला कजरा,
ये अदांज मुरकियों का,इक ग़ज़ल सी तुम प्यारी।।
नाराज़गी जताना और झट से मान जाना,ये खूबसूरत आदत लगती है भली प्यारी।।
तुम एक अंगडाई, जो दिल मे गई समाई, तुम्हारी छुअन रही सिहरन, की वजह मेरी सारी।।
बस सिर्फ इक ख़्याल, और उसका बुना ख़्वाब, यह लम्हें नजदीकियों के,तुम वजह तुम ही सारी।।
संदीप शर्मा सरल।।
देहरादून उत्तराखंड ।।