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शहर जल रहा है

शहर जल रहा है तन्हाई से,
लोग उलझे हैं बस खुदाई से।

जिस गली से भी मैं गुज़रता हूँ,
शोर मिलता है हर शनाई से।

रोज़गार और बेरोज़गारी भी,
दोनों लगते हैं अब कमाई से।

भूख मरी है यहाँ मोहब्बत की,
और ज़ुबाँ जल रही मिठाई से।

हर तरफ आदमी है जैसे गुम,
इंसानियत रूठी रुसवाई से।

झाँकते हैं जो औरों के घर में,
वो शरीफ़ हैं बस रिवायती से।

चोर, उचक्के हुए बदनाम यहाँ,
ज्ञानी बिकते हैं पाखंडी राय से।

ज्ञान बाँटता फिरता है हर कोई,
मशहूर है मूर्ख चतुराई से।

काफ़िला लेकर फिरता है कोई,
दरबार सजाता दिखावाई से।

भूत भरम का सब पर भारी है,
शहर खो गया इस परछाईं से।
आर एस लॉस्टम

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