Uncategorized
Trending

प्रेम के नियम।

चर्चा:- प्रेम पर चर्चा हो तो सबके अपने अपने मंतव्य है।और मैं कभी किसी को तटस्थ नही देखता जो एक बार को इसे जायज ठहराता है वही अन्य के लिए नाजायज। चलिए देखते है कौन किसके पक्ष मे खड़ा नज़र आता है।।

वक्ता एक:- प्रेम ऐसी अनुभूति है कि इसके नियम नही होते।ये नियमो से परे की अनुभूति का नाम है। उदाहरण के नाम तो नही लूंगा।क्योंकि, मीरा हो या राधा,मांझी हो या मैं और आप हम सब इसी मे आबद्ध है।यानि प्रेम किसी नियम मे आबद्ध नही।

वक्ता दो :- प्रेम एक नियमो की धूरी का संगम है,जिसमे वफादारी,ईमानदारी,व त्याग एव समर्पण अनिवार्य है। और नियमो के माप दंड इसे पोषित करते है।किंतु देखा गया है कि इन नियमो मे अक्सर कमी के चलते ये प्रेम रूपी भाव मुल्य खो देता है।और फिर शिकवा शिकायत इस भाव का अवमूल्यन करते दिखते है।

वक्ता तीन:-  जैसे कि उपरोक्त वक्तव्यों मे हमने प्रेम पर वक्ताओं के विचार सुने जो व्यवहार मे प्रेम को बताने के लिए बताए है।किन्तु मैं कुछ ऐसे प्रेम गिनाना चाहूँगा जो प्रेम को नियम  व कायदो से परे भी ले जाता है और उसे पास भी ले आता है।
जैसे मानव का किसी जीव के प्रति आकर्षण, या प्रेम। और प्रेम तो प्रेम ही,है ,
माँ का पुत्र, व पुत्री पर वात्सल्य।
पिता का पुत्र प्रेम,व, पुत्री अनुराग।
पुत्र का माता पिता से प्रेम।
संबंधो का आपसी प्रेम, मसलन  दोस्ती,व संबंध विशेष प्रेम इत्यादि। और तो और एक निर्जीव वस्तु से प्रेम। घर,बार,खेत खलिहान, जीवन उद्देश्य, गाड़ी, शौक। और सर्वोच्च राष्ट्र प्रेम आदि आदि।यह सब किसी पराकाष्ठा को स्वीकार नही करते।किंतु नियमबद्ध है।।

निष्कर्ष :- प्रेम भाव है,यह अनुभूति है।नियम है भी और नही भी।क्योकि नियमों के उल्लंघन पर जो डांट या विरोध दिखाई देता है वह भी प्रेम के चलते होता है किसी को उसके परिणाम दिखते है तो किसी को लगता है कुछ अनियमित हो रहा है। और इससे फलां का अहित हो सकता है तो हुआ न यह भी प्रेम, और फिर हम किसी भी प्रेम की बात करे तो यह अपने ही नियम कानून बनाता है।पूर्व के नियम तब मानता है जब उसे लाभान्वित करते है अन्यथा उनके विरुद्ध ही अधिकांशतः मुखर होता है।
असल बात है कि मनुष्य स्वार्थी रहा है और वह हर भाव से खेलता नज़र आता है।और तो और भगवान तक से प्रेम का आडम्बर करता दिखता है।फिर मिसाल क्या दे कुछ नही बस चर्चा का अंत प्रेम से करते है क्योंकि बिना नियम  यह समाप्त नही होगी।और गर नियम देखेंगे तो प्रेम नही होगा।


संदीप शर्मा सरल

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *