
पारिजात चमन में मुस्काये,
सावन की बूँदें रंग बरसाए,
कीट, पतंग, मेढक टरटराये,
रिमझिम फुहारों ने तन-बदन भिगाये।
कोयलिया ने राग तो छेड़ा,
कूक में सावन का जादू बिछाया,
पायलिया ने गीत न गाये,
फिर भी झींगुरो के झंकार ने सपने सजाये।
पग पग छलके कहीं नयन गगरिया,
सावन की मस्ती, हरियाली रात,
दिल में उमड़ आई अनकही बात।
बादल गरजे, बिजली चमकाए,
मन के तारों को झंझर बजाए,
रिमझिम फुहारों में डूबा पूरा कायनात,
माटी की सौंधी खुशबू जगाए जज्बात,
सावन की लहरों ने फिर एक बार,
हर बूँद में बसी एक ही चाह,
प्रेम, स्नेह का मेला सजे बार-बार।
_ डॉ. अभिषेक कुमार