
विकट समस्या जनसंख्या का,
खोजें शीघ्र निदान !
संभले नहीं अगर जो हम-सब,
होंगे धूसरित अरमान !!
सोचें समझें जागें अब तो,
वर्ना हम पछताएंगे !
खेत चिड़ईयां चुग जाएगी,
देखते रह जाएंगे !!
ए.आई. का है युग आया,
मूल्यहीन हो जाएंगे !
हो सामंजस्य विवेक से इनका,
तब ही अवसर पाएंगे !!
तालमेल बैठाना होगा,
आनेवाले कल से !
अवसर चूकगए तो समझो,
हाथ रहेंगे मलते !!
जनसँख्या पर करें नियंत्रण,
आबादीको रोकें !
हम दो और हमारे दो हों,
‘जिज्ञासु’जन सोचें !!
देखेंगे सारे जग वाले,
मिट जाएगी बदहाली !
सुख शांति और विकास संग,
आएगी फिर खुसहाली !!
कमलेश विष्णु सिंह ‘जिज्ञासु’