
रूपेश सिंह लॉस्टम
थोड़ा सा इश्क़ करें क्या,
ये छोटा-सा रिस्क़ लें क्या?
दिल में छुपा के रखूंगा,
दुनिया वालों से बचा के रखूंगा,
सच कहता हूँ —
थोड़ा सा इश्क़ करें क्या?
मैं तो वैसे भी तुझ पे मरता हूँ,
कसम से, बस तुझी को चाहता हूँ।
तू मेरी बनेगी क्या?
मैं तेरा ही सपना देखता हूँ।
थोड़ा सा इश्क़ करें क्या?
तू मुझे बहुत अच्छी लगती है,
बिलकुल सच्ची लगती है।
बातों की पक्की लगती है,
फूल की नाज़ुक कली लगती है।
तो चल…
थोड़ा सा इश्क़ करें क्या?