
रचना विधा :- कविता।
मौलिक रचनाकार:- संदीप शर्मा सरल।
काव्यांश
हिंदी को तुम रोज जिमाना, चबा चबा कर खूब बतियाना, बनाकर इसकी चटनी मीठी, उर्दू फारसी संस्कृत मिश्रित, और जब फिर स्वाद को चखना, मिलाना इसमे व्याकरण रचना,तब देखना क्या स्वाद बनेगी,हृष्ट-पुष्ट आहार बनेगी।।
जब घर बाहर हो कही दावत,इस व्यंजना का करो स्वागत,,वर्ण स्वर हो या फिर व्यंजन, अभिव्यंजना को अलख निरंजन, खूब करना हिन्दी मे बातें,परदेस मे भी तुम न शर्माना, देखना हृष्ट-पुष्ट बनेगी,रेसिपी आचार व्यवहार बनेगी।।
और फिर कही हो बिटिया का शादी,तो ब्याह कह आमंत्रण भिजवाना,सजने सजाने को अलंकार है,अनुप्रास यमक से भी मिलवाना, जो हो रस्म हल्दी विदाई की,तो करूणार्द्र भाव के गीत सुनाना,फैमिली हृष्ट-पुष्ट बनेगी,हिन्दी मे ही, बारात सजेगी।।
जब देखो, बढ़ता परिवार ये,बच्चो को आ रहा स्वाद है ,कहानी कविता,गीत,रूबाई दोहा,सुनाना,और चौपाई नींद को जब आते देखना ,तो धर धीर हीर वेदना,, देखना हृष्ट-पुष्ट बनेगी,हिन्दी की तकदीर बनेगी।।
और जब फिर वयस्क हो जाओं,हिन्दी मे ही सब बतियाओं, वचन, लिंग एक शब्द, मुहावरे,,विलोम, विकार के असर बांवरे,इतनी सशक्त इस बनाओ हृष्ट-पुष्ट समाज बनाओं, इसकी अराध्य को भेंट चढ़ेगी, हृष्ट-पुष्ट समवेत बनेगी।।
हिन्दी की सच्ची सेवा है,बोलना लिखना पढ़ना देवा है,व्यापार व्यवहार मे करना शामिल, हिन्दी हिंदुस्तान की तामील, इसकी यूँ ही अराधना करना,अन्य भाषा से तनिक न लड़ना,देखना हिंद की नीड़ बनेगी,हृष्ट-पुष्ट तस्वीर बनेगी।।
संदीप शर्मा सरल
देहरादून उत्तराखंड