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“बहना की चाहत”

चाहती नहीं महंगे तोहफे और दौलत
बस थोड़ा सा स्नेह तुम्हारा चाहती है।
जिम्मेदारियों में भूला चुकी वो खुद को
संग मिलकर तुम्हारे बचपन वो जीना चाहती है।

यूं तो हर पड़ाव पर मिले हैं साथी
पर बचपन के साथी एक तुम्ही तो हो।
सीखा तुमसे रूठना-मनाना,प्यार जताना
हर खुशी और गम के सहभागी तुम्ही तो हो।

रहता है बस एक दिन का इंतजार
जो साल भर में एक ही बार आता है।
एक एक मन्नतों का धागा रक्षा सूत्र बनकर
कलाई पर तुम्हारी खूब सुहाता है।

करता है हृदय सदैव तुम्हारे सुख की कामना
हर्षित हो जीवन तुम्हारा और घर अंगना।
निरंतर रहे खुशहाली मायके की देहलीज पर
मेरे लौट आने की सदैव राह तुम तकना

ना देना कुछ भी सौगातें पर करना सदैव प्यार से बातें
भावों की भूखी वो बस अमिट रहे उसकी यह यादें।
सलामत रहे यह अटूट बंधन और प्यारा रिश्ता
सदैव बना रहे स्नेह तुम्हारा बस इतनी-सी आकांक्षा।

स्वरचित:- उर्मिला ढौंडियाल ‘उर्मि’
देहरादून (उत्तराखंड)

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