
दरवाजे की बेल लगातार बजे ही जा रही थी , रसोई में काम कर रही एक महिला अपनी साड़ी के पल्लू से हाथ पोंछती हुई अपने आप में ही बोलती हुई आ रही थी, अरे कौन है ?आ रही हूं जरा थमों तो सही जैसे ही दरवाजा खोलती है तो सामने उसकी बेटी वर्षा एक पिंक कलर की हैवी ड्रेस में बहुत ही सुन्दर लगती हैं जैसी देखते ही वह अपनी बाहें फैला लेती हैं। वर्षा भी मां को देख सीधे उनसे लिपट जाती है ।
वर्षा: क्या मां कितनी देर कर दी दरवाजा खोलने में कब से बेल बजा रही हूं।
मां: हां तो आ ही रही थी , चल अब अंदर आ दरवाजे पर ही सारी बातें करेगी क्या?
दोनों अंदर आ जाती हैं।
अंदर आते ही मां वापिस रसोई में चली गई, वर्षा आंगन में लगे सोफे पर लगभग पसरते हुए बैठ गई और अपनी नजर इधर उधर घुमाते हुई बोली,”मां बाकी सब कहां है कोई दिख नहीं रहा और आप कहां रसोई में चली गई भाभी कहां हैं”?
वो तेरे भाभी अपने भाई को राखी बांधने गई है भाई और दोनों बच्चे भी साथ गए है थोड़ी देर में आ जाएंगे।मां रसोई से ही बोलती हैं।
क्या?? भाभी अपने मायके गई और भाई भी साथ में चला गया पता नहीं था मैं आ रही हूं। वर्षा थोड़ा गुस्सा होते हुए बोली।
मां: हां तो आ जाएंगे थोड़ी देर में बहु को भी तो अपने भाई को राखी बांधनी थी । चल ले तब तक तू नाश्ता कर ले तेरी भाभी बनाकर गई है तेरे लिए आलू टिक्की तुम्हें अच्छी लगती है उसके हाथ की तो सुबह जल्दी ही बना ली। मां उसे प्लेट पकड़ाते हुए बोली।
चलो अच्छा है थोड़ी फिक्र तो कर ली अपनी ननद की। वर्षा मुंह बनाते हुए बोली।
थोड़ी देर बाद वर्षा का भाई उमेश उसकी पत्नी वंदिता और दोनों बच्चे लक्की और आरव आ गए।
लक्की और आरव तो आते ही बुआ से लिपट गए ।
तरह तरह की बाते बताने लगे ।
वंदिता: दीदी आ गई आप , चलो अच्छा है अभी शुभ महुर्त है आप पहले राखी बांध दे।
सब राखी के लिए तैयार हो जाते है ।
वर्षा सबके लिए बहुत ही सुन्दर राखियां लाई थी और साथ में उपहार भी।
उसके भतीजे तो बहुत खुश हो गए अपने अपने उपहार देख कर।
उमेश और वंदिता ने भी वर्षा को शगुन दिया ।
राखी बांधने के बाद सबने मिलकर खाना खाया ।
खाने के बाद बच्चे तो खेलने लगे ,उमेश कुछ काम से बाहर चला गया और वंदिता रसोई समेटने लगी । वर्षा अपनी मां के पास बैठी बाते कर रही थी।
वर्षा: देखो मां मैं कितना खर्चा कर कितनी महंगी राखियां लाई , सबके लिए इतने अच्छे उपहार लाई और भाई ने सिर्फ 500 रुपए और भाभी ने ये साड़ी दे दी अब ससुराल में जाकर क्या बताऊंगी कितना बुरा लगेगा । मेरी सास कहेगी कि तेरे भाई ने बस यही दिया । कुछ तो सोचना चाहिए था भाई को बस पकड़ा दिए 500 रुपए। भाभी के भाई ने भाभी को कितने अच्छे उपहार दिए । और मेरे भाई ने … वर्षा मुंह बनाते हुए बोली।
मां: वर्षा ये क्या बोल रही हैं? तेरे भाई ने जो दिया अपने मन से दिया है पूरे मान सम्मान के साथ । पहले तो तेरी सास को कुछ कहना ही नहीं चाहिए दूसरा अगर वह कुछ बोलती है तो तुम्हें अपने पीहर का मान अपने ससुराल में बनाकर रखना चाहिए। तेरे भाई या भाभी ने तो नहीं कहा था ये महंगे उपहार लाने को तुम लेकर आई उन्होंने पूरे सम्मान के साथ लिए। तेरे भाई का हाथ अभी थोड़ा तंग चल रहा हैं और ये साड़ी भाभी को अपनी मां ने अभी तीज पर दी थी और उसने उसी दिन इसको अलग से तेरे लिए रख दिया कि मां दीदी को राखी पर दे दूंगी अच्छी लगेगी , और देख ये अभी जो उसके भाई ने उपहार दिए उस में से ये देख तेरे लिए मुझे दे गई है और बोली कि ,”मां दीदी इतना लेकर आई है , अगर हम कुछ नहीं देंगे तो उनके ससुराल में अच्छा नहीं लगेगा आप दीदी को जाते वक्त दे देना।”
देख वर्षा वो पराई होकर भी तेरे ससुराल में तेरा मान घटने नहीं दे रही और तू अपनी होकर भी अपने भाई का मान नहीं रख सकती । देख बेटा राखी का त्यौहार भाई बहन के प्रेम का प्रतिक हैं इसे धन दौलत, उपहारों से मत तौलो। तुमने ये देखा कि भाई ने क्या दिया ? ये नहीं देखा कि कितने प्रेम से दिया , तुम्हारे पास बैठा तुमसे बाते की बचपन की बातों और शरारतों को याद किया तुम्हें कितना अच्छा लगा । अगर तुम इसी तरह करती रही तो शायद अपने भाई भाभी के मन में अपनी जगह नहीं रख पाओगी बेटा रिश्तों को प्रेम के धागों से बांधो, पैसों से नहीं।
थोड़ी देर पहले ही तेरी बुआ का फोन आया था और अपने भाई को याद कर फ़फ़क फ़फ़क कर रो रही थी क्यों, क्योंकि उन्होंने कभी पैसों से रिश्तों को नहीं जोड़ा वो कितने संपन्न घर की है लेकिन तेरे पापा ने जो भी दिया उसे मान और सम्मान के साथ अपने माथे लगाया । आज उनके जाने के बाद भी उन्हें याद कर आंसू बहा रही थी । क्या तुम्हें याद नहीं तेरी बुआ कितने महंगे महंगे उपहार लाती थी तुम्हारे लिए । तुम्हें पता है एक बार बुआ की ससुराल वालों ने बुआ से तेरे पापा के लिए कुछ गलत बोल बोले तो तेरी बुआ ने साफ कह दिया मेरा भाई जो भी देता है अपने हिसाब से अच्छा ही देता हैं वो आपकी बराबरी कभी नहीं कर पाएगा । इसलिए मेरे पीहर से जो भी आयेगा मुझे बह स्वीकार हैं और मैं उस पर किसी की टिप्पणी नहीं सुननी चाहूंगी। उसके बाद तेरी बुआ को कभी कुछ सुनना नहीं पड़ा। देख बेटा किसने कितना दिया ये देखने से पहले ये देखो कि कितने मन से दिया। चल अब ये सब भी अपनी बेग में डाल ले और आगे से ये बाते अपने दिमाग में लाना भी मत।
वर्षा अपनी मां के गले लग जाती है और कहती हैं, सॉरी मां मुझसे गलती हो गई आगे से नहीं करूंगी।
समाप्त
विद्या बाहेती महेश्वरी राजस्थान