
सावन की पूनम तिथि को, आता राखी का त्योहार।
परम प्रेम का पावन बन्धन, लखता है इसको संसार।।
सत्य-सनातन धर्म जगत में, रक्षा-बन्धन का ये पर्व।
देता है पहचान हमें नयी, होता है हम-सबको गर्व।।
सदियों की इस परम्परा में, रक्षा-बन्धन होता खास।
दूर देश से देखो आयी, बहन तुम्हारी तुम्हरे पास।।
बहनों के आने के हित में, खुले भाई गृह के सब द्वार।
राखी लेकर हाथ में बहना, करती भाई से मनुहार।।
निश्चल, पावन प्रेम अनोखा, ऐसा राखी का त्योहार।
धागों का ये प्यारा बन्धन, अमर प्रेम जिसका आधार।।
रोली-अक्षत और फूल से, बहन सजाती जिसका भाल।
भाई हित वो करे कामना, पास न आवे उसके काल।।
भाई देता है बहना को, खुश होकर ऐसा उपहार।
वचन निभाता है बहना प्रति, परोपकार करता हर बार।।
खुशबू आती सदा प्रेम की, महक उठा जिससे संसार।
रक्षा-बन्धन बना आज ये, खुशियों का ऐसा आधार।।
रेशम धागा आज हुआ है, ममता से ऐसा मजबूत।
प्रेम हृदय में बसा था भारी, कर देता सबको अभिभूत।।
रचनाकार-
पं० जुगल किशोर त्रिपाठी (साहित्यकार)
मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)