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शीर्षक- रेल और भारत की सैर (भाग- 1)

आओ बच्चों! तुम्हें करायें,
सैर हिन्दुस्तान की।
जो कभी न देखा, बो सब देखो,
महिमा हिन्दुस्तान की।।

मऊरानीपुर से हम चलकर,
पहुँचे झाँसी आज सुबह।
किला, बाग, संग्रहालय देखा,
माँ-पितु से आये थे कह।।

बहुत मजा झाँसी में आया,
किला रानी का देखा जब।
बड़ी-बड़ी हैं वहाँ दुकानें,
हैं बजार बहु, देखे सब।।

देखा लक्ष्मीनारायण मन्दिर,
और लहर की माँ देखी।
रुप बदलतीं तीन रोज वे,
बता सभी को दे सेखी।।

रेल से घूमे जगह-जगह हम,
बरुआसागर पहुँचे हम।
झील सुनहरी देखी हमने,
उसे देख सब भूले गम।।

है प्रसिद्ध तालाब वहाँ पर,
किला बना है अति सुन्दर।
आते थे शिकार पर राजा,
वहाँ ठहरते थे दिन-भर।।

बारीगढ़ का चोर एक था,
जग में बौना चोर कहाय।
भूल-भुलैया किला बना है,
उसका सब कोई देखें जाय।।

दिन-भर घूमे रेल से हम सब,
बहुत मजा हमको आया।
सायंकाल लौटकर घर को,
आये, सबको वृत्तान्त सुनाया।।

रचनाकार-
जुगल किशोर त्रिपाठी, बम्हौरी, झाँसी

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