
प्यार एक बयार है ,
जो सबसे टकराता है ,
किंतु किसी एक का हो नहीं सकता और टकराते हुए आगे की ओर बढ़ जाता है ।
प्यार तो नदियों का धार है , जो सबसे मिलते हुए आगे की ओर बढ़ जाता है । वह किसी को अपना बना नहीं सकता ।
प्यार इश्क का इश्तिहार है , जिनमें अधिकतर हत्या , आत्महत्या या तलाक अतिशीघ्र होता है । ये समस्त वारदातें प्यार करने वालों द्वारा ही होते हैं । दूसरे से प्यार कायम करने हेतु ये सब वारदातें होतीं हैं , जिनमें बहुत ही अधिक धूर्तता होती है , परिणामत: हो जाता है जेल , प्यार का बयार थम सी जाती है ।
प्यार लैला मजनूॅं का विस्तार होता है , जिनमें नेताओं सा लंबे लंबे वादे और संग जीने मरने की कसमें होती हैं तथा शीघ्र ही एक दूसरे के समीप हो जाते हैं ।
प्यार शेर के रूप में सियार का दहाड़ है , जिसे दहाड़ने की शक्ति और दहाड़ने का ढंग भी नहीं मालूम है ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )
बिहार ।