
मत पूछो नवरात्रि की रातें कितनी प्यारी होती हैं,
अपनों, परायों को एक डोर में पिरौती हैं।
नौरंगी लाइटों से जगमगाती रात होती हैं।
मानों उत्साह से भरी पॉजिटिव वाईब्स देती हैं।
दिल झुमके नाच गा उठता हैं।
रंगबिरंगे कपड़े पहने शृंगार से सजी ये रात होती हैं।
हंसते मुस्कुराते नाचते नवरात्रि की रातें हैं।
प्रेम, करुणा, माया से भरी होती हैं।
बिना किसीको जाने समूह से जुड़ जाते हैं।
एकता, धैर्य, सामर्थ्य, ममत्व, अपनत्व नवरात्रि की रातों में दिखती हैं।
बच्चों से लेकर बुजुर्ग भी ठुमक उठते हैं।
झिलमिल सितारों वाली खिलखिलाती ये रात नजर आती हैं।
अनमोल ये क्षण लोगों को प्रीत से जोड़ता हैं।
डांडिया, गरबा, गोंधल धूम धाम से गाते नाचते हैं।
ढोल की आवाज में मग्न होकर पैर टिमकाते हैं।
मधु मुस्कान चेहरे पर नवरात्रि मनाते हैं।
हर गली में नवरात्रि की रातें सुहानी होती हैं।
शक्ति, स्नेह, भावुक ऊर्जा से भरी रात होती हैं।
स्वरचित, मौलिक रचना, अप्रकाशित
दुर्वा दुर्गेश वारीक ‘गोदावरी’ (गोवा)