
- रामा तक्षक
भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की तरफ उंगली उठाते हुए, नाटो प्रमुख मार्क रुत्ते का कथन है “मोदी पुतिन के साथ फोन पर कहते हैं कि डोनाल्ड ट्रम्प ने हम पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया है। अब यूक्रेन युद्ध की स्ट्रेटजी क्या रहेगी ?”
यह कहना नाटो के खोखलेपन को ढ़ाँकने का प्रयास है।
चीन और भारत के बीच, गलवान घाटी में चीन द्वारा बीस भारतीय सैनिकों के मारे जाने के समय, मार्क रुत्ते नीदरलैंड्स के प्रधानमंत्री थे। उस घटना पर डच सरकार की प्रतिक्रिया थी कि ये भारत और चीन के बीच का मामला है। ठीक यूक्रेन युद्ध के बाद रुत्ते ने अपने रक्षा मंत्री बोबके को भारत भेजा था। इस दिल्ली यात्रा का उद्देश्य, यूक्रेन युद्ध पर मोदी से पुतिन से बात करें, भारत शांति की पहल करवाये। तत्समय भारतीय रक्षामंत्री श्री जय शंकर ने नीदरलैंड्स के रक्षा मंत्री को दिल्ली में, भारत और चीन के बीच सीमा पर हुई झड़प के बाद, डच सरकार की प्रतिक्रिया कि याद दिलाई थी।
साढ़े तीन साल से अधिक समय से चल रहा यूक्रेन युद्ध, शांत होने का नाम नहीं ले रहा है। नाटो की सारी आर्थिक व राजनीतिक नीति इस युद्ध को रोकने में नाकाम रही है। यूरोप स्वयं रूस से तेल आयात कर रहा है। ट्रम्प के कहने पर यूरोप 2028 के बजाय 2027 में पूर्ण तेल की कटौती करने की कह रहा है। दूसरी ओर ट्रम्प और पुतिन की अलास्का में हुई मीटिंग के बाद से यूक्रेन पर बमबारी कम नहीं हुई है। इस शिखर वार्ता का परिणाम उल्टा हुआ है। रूस की बमबारी बहुत बढ़ गई है।
9-10 सितम्बर को रूस के 19 ड्रोन पोलैण्ड की सीमा में आये हैं। जिनमें से सिर्फ चार को एफ 35 युद्धक विमान की मदद से हवा में गिराया जा सका है। शेष 15 ड्रान अपने निर्धारित लक्ष्य तक पहुँचे हैं। हालाँकि कोई आर्थिक क्षति या कोई हताहत नहीं हुआ है। यह रूस की नाटो की तैयारी की टेस्टिंग है। रूस नाटो की क्षमताओं को टेस्ट कर रहा है। यह सब नाटो के खोखलेपन को भी दर्शाता है कि नाटो के पास ड्रोनेस् को गिराने के लिए कोई साधन नहीं हैं। उन्हें ड्रोन को गिराने के लिए हजारों करोड़ों रुपए की एफ 35 की मदद लेनी पड़ी पड़ रही है।
24 फरवरी 2022 को शुरू हुए यूक्रेन युद्ध में, डोनाल्ड ट्रंप के निर्वाचन से कुछ नये आयाम जुड़ गये हैं। अमेरिकी मतदान से पहले ट्रम्प का कहना था कि यदि मेरा राष्ट्रपति के रूप में चुनाव हुआ तो मैं चौबीस घण्टे में यूक्रेन युद्ध खत्म करवा दूँगा। ट्रम्प के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के अब लगभग नौ माह बाद भी यूक्रेन युद्ध की आग भभक रही है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की की व्हाइट हाऊस में बेइज्जती करना जगत जाहिर है। ट्रम्प ने अलास्का में पुतिन के लिए रेड कार्पेट बिछाया। अलास्का में पुतिन और ट्रम्प के बीच हुई बातचीत के पट धीरे धीरे खुल रहे हैं। इस वार्ता के बाद, पुतिन ने साफ शब्दों में, स्पष्ट कर दिया है कि उसने अपनी मनसा ट्रम्प को बता दी है। वह पश्चिम की शर्तों को नहीं मानेगा। अलास्का में मीटिंग के बाद से पुतिन ने यूक्रेन पर और अधिक ताबड़तोड़ हमले करने शुरू कर दिए हैं।
ट्रम्प और पुतिन की अलास्का शिखर वार्ता के बाद, रूस के तीन फाइटर जेट्स मिग 31 एस्टोनिया के आकाश में 12 मिनट तक और फिनलैण्ड की खाड़ी में बिना अनुमति के उपस्थिति रहे हैं। तीन मिग विमानों की एस्टोनिया के आकाश में उपस्थिति, पुतिन के आक्रामक रुख को स्पष्ट करती है। इन तीनों मिग 31 को इटली, स्वीडन और फिनलैण्ड के जेट्स ने खदेड़कर भगाना पड़ा। हालाँकि रूस का कहना है कि उसके जेट्स अंतर्राष्ट्रीय सीमा में ही थे। ये जेट्स एस्टोनिया की सीमा में नहीं गये।
सितम्बर माह में यह दूसरी घटना रही है कि एस्टोनिया ने नाटो के सदस्य देशों की नाटो के अनुच्छेद 4 के तहत, आपात बैठक बुलाई गई है। इससे पहले 9-10 सितंबर को पोलैण्ड की सीमा में 19 रसियन ड्रोन गिरे थे। इस घटना पर पौलैंड ने भी नाटो की आपात बैठक बुलाई थी।
एस्टोनिया की प्रधानमंत्री क्रिस्टन मिशाल ने अपने प्रतिक्रिया में कहा है कि रूस की इस तरह की भड़काऊ कार्यवाही के लिए नाटो को संगठित और ठोस जवाब देना होगा।
भौगोलिक रूप से एस्टोनिया की रूस के साथ लम्बी सीमा रेखा है। एस्टोनिया में रूस का यह दखल पहली बार नहीं हो रहा है। अकेले इस वर्ष, एस्टोनिया की सीमाओं का रूस द्वारा अतिक्रमण पांचवीं बार किया गया। जैसा कि एस्टोनिया और विश्व के समाचार जगत में सुनने पढ़ने को मिल रहा है।
रूस और बेलारूस की सेनाओं ने नाटो की सीमा पर जापात (Zapat) यानि ‘पश्चिम’ के नाम से युद्धाभ्यास किया है।
यह बहुत ध्यान देने योग्य बात है कि एस्टोनिया का एक प्रमुख शहर नवारा, रूस की सीमा के बहुत निकट है। इस शहर में नब्बे प्रतिशत से अधिक रूसी मातृभाषी नागरिक रहते हैं। रूसी प्रोपेगेंडा की सीमा पर लगे टी वी के माध्यम से इस शहर में सहज पहुंँच है। एस्टोनिया के इस शहर और रूस की सीमा के बीच केवल एक नदी है। इस नदी पर मित्रता पुल है। जिसे यूक्रेन युद्ध के बाद से बंद कर दिया गया है।
वर्तमान में रूस की सीमा पर, पश्चिमी देशों को भड़काऊ गतिविधियां देखी और सुनी जा रही हैं। पोलैंड देश की सीमा में 19 ड्रोन भेजे जाना। उसके बाद, तीन मिग 31 का एस्टोनिया की सीमा में 12 मिनट तक उड़ान भरना। रोमानिया की सीमा में रसियन ड्रान भेजे जाना। हाल ही में पोलैण्ड और एस्टोनिया की भड़काऊ घटना के बाद, आकाश में उपस्थित ड्रोन के कारण, डेनमार्क और नार्वे के एयरपोर्ट भी कुछ घण्टे व्यावधानित व बंद रहे हैं। रूस की ये सब गतिविधियाँ पश्चिमी देशों के नाटो गठबंधन का टेस्ट हैं।
एस्टोनिया में रूसी मिग विमानों की उपस्थिति, अलास्का में मिग विमानों की उपस्थिति होना ट्रम्प और पुतिन की अलास्का के राजनय को सामने लाता है।
ट्रम्प का कथन है कि शूट डाउन द रसियन प्लेन्स यानि रसियन विमान को उड़ा दो। ट्रम्प के इस कथन के आधार पर, नाटो देशों द्वारा रसियन युद्धक विमान को मार गिराना, यूरोप के नाटों देशों में युद्ध का नया नाटक खड़ा कर सकता है। रूस के युद्धक विमानों द्वारा अगली बार एस्टोनिया की सीमा अतिक्रमण के समय, इन विमानों में से एक विमान को मार गिराये जाने पर रूस की प्रतिक्रिया निश्चित है।
इस प्रतिक्रिया स्वरूप, रूस की सेनाएँ नेवारा पर रूसी झण्डा फहरा देंगी। ऐसा बहुत सहज है। नवारा की 98% प्रतिशत जनता रूसी भाषा भाषी है। नवारा एस्टोनिया की राजधानी से दूर व लेनिनग्राद के निकट है।
रूस के सैनिकों द्वारा अचानक, नवारा शहर को मध्य रात्रि में कब्जाए जाने पर, नाटो की सेनाएँ सुबह आँखें मलती रह जायेंगी।
ऐसी स्थिति में, बहुत सम्भव है कि ट्रम्प एक्स पर लिख भेजे “रसियन विमान गिराने की ऐसी जल्दी भी क्या थी ? नवारा शहर में तो लगभग सौ प्रतिशत लोग रूसी भाषा भाषी हैं।”
ट्रम्प के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद से अब तक ट्रम्प की आवाज में, पुतिन के प्रति या रूस के यूक्रेन के आक्रमणों कि प्रतिक्रिया के रूप में, ट्रम्प की आवाज बहुत सुरीली है। उसने अपने हस्ताक्षर करके आज तक रूस के खिलाफ कोई भी प्रतिबंध नहीं लगाए हैं। अलबता ट्रंप ने अलास्का में रूस के राष्ट्रपति पुतिन का लाल दरी बिछाकर स्वागत किया है। यूक्रेन युद्ध की शुरुआत 24 फरवरी 2022 के बाद पश्चिमी नेताओं द्वारा पहली बार, नाटो की धरती पर, इस तरह पुतिन का भव्य स्वागत किया गया है।
ट्रंप के शब्दों में, पुतिन के प्रति, कोमल रवैया रहा है। ट्रम्प की सौ में से एक प्रतिक्रिया में पुतिन या रूस के प्रति क्षोभ नजर आता है। अनुमानतः पुतिन की स्ट्रेटजी से लगता है कि ट्रंप की पूंछ पुतिन के हाथ में है। पुतिन के पास अवश्य कुछ ऐसा है जिसका खुलासा करने पर ट्रंप की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इस कारण ट्रम्प पुतिन के खिलाफ कोई भी कदम उठाने से हिचक जा रहा है। वैसे भी ट्रंप के बारे में कुछ भी कहना एक जुआ खेलना है।
अलास्का में ट्रंप ने पुतिन से यूक्रेन युद्ध की स्ट्रैटेजी के बारे में चर्चा की है। नाटो के मुखिया को इस चर्चा के बारे में ट्रम्प से पूछना चाहिए कि वह चर्चा क्या हुई और उसका नतीजा क्या निकलेगा ?
नाटो मुखिया की हिम्मत है तो ट्रंप पर इस बात पर भी उंगली उठाई जानी चाहिए कि आखिर पुतिन के प्रति,
ट्रम्प का रवैया इतना कोमल क्यों है?
दूसरी ओर ट्रम्प यूक्रेन को अपनी पूरी जमीन पर रूस को हराकर, वापस आधिपत्य पाने की बयानबाजी कर रहे हैं। जबकि यूक्रेन को मदद रोक दी है। लम्बी दूरी तक मार करने वाले हथियार यूक्रेन को अब तक नहीं दिए गए हैं।
यदि यूक्रेन युद्ध में रूस जीत जाता है तो आगे का दृश्य क्या होगा ? यह एक बहुत चिंता जनक बात है। क्या पुतिन यूक्रेन तक ही सीमित रहेगा या वह ट्रम्प की कूटनीति से सामञ्जस्य बनाकर, अपने सपने, सोवियत रूस साम्राज्य को आगे बढ़ाने के लिए प्रयत्नरत रहेगा ?
जहाँ तक भारत और अमेरिका की कूटनीति का प्रश्न है यह समय ही बतायेगा कि तलवार की धार पर, भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चले या अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प।