
सम्बन्ध— इस प्रकार इस परम प्रभु परमेश्वर को तत्व से जानने का तथा सर्वत्र देखने का फल बतलाते हैं —
स पर्यगाच्छुक्मकायमव्रणमस्नाविर’न् शुद्धमपापविद्धम् ।
कविर्मनीषी परिभूः स्वयंभूर्याथातथ्तोऽर्थान् व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्यः ।।
व्याख्या— उपर्युक्त वर्णन के अनुसार परमेश्वर को सर्वत्र जानने देखने वाला महापुरुष उन पर ब्रह्म पुरुषोत्तम सर्वेश्वर को प्राप्त होता है, जो शुभा-शुभ कर्म जनित प्राकृत सूक्ष्म देह तथा पाञ्चभौतिक अस्थि शिरा-मांसादामय खड्विकारयुक्त स्थूल देह से रहित छिद्ररहित दिव्य शुद्ध सच्चिदानंदघन है; एवं जो क्रांतिदर्शी — सर्वद्रष्टा हैं, सबके ज्ञाता सबको अपने नियंत्रण में रखने वाले सर्वाधिपति हैं; और कर्मपरवस नहीं वरन् स्वेच्छा से प्रकट होने वाले हैं तथा जो सनातन काल से सब प्राणियों के लिए उनके कर्म अनुसार समस्त पदार्थों की योग्य रचना और विभाग व्यवस्था करते आए हैं ।।८।।
साभार —गीता प्रेस
लेख एवं प्रेषण—
साधक बलराम शुक्ल
नवोदय नगर, हरिद्वार
आज अयोध्या प्रवास पर…….