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पिता-माता

पिता-माता सा जग में,
देख लो, कोई न भाता है।
सुखद पल इनके संग बीते,
न मन इन्हें भूल पाता है।।

हमारी नींव के निर्माण हित,
ये प्रयासरत रहते।
कभी डिगने नहीं देते,
हमें खुद भी नहीं डिगते।।

रहें ये साथ सुख-दुःख में,
कभी न साथ छोडेंगे।
भरोसा इनपे तुम करना,
सत्य की ओर मोडेंगे।।

बड़े ईश्वर से जग में हैं,
जन्म से साथ रहते हैं।
सदा बच्चों के हित जीते,
उन्हीं हित प्राण तजते हैं।।

रचना-
जुगल किशोर त्रिपाठी
बम्हौरी, मऊरानीपुर, झाँसी

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