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आकाश वृति का मर्यादित स्वरूप

‘कर्म प्रधान विश्व करि राखा ।
जो जस करइ सो तस फल चाखा ।।

शुक्ल, मिश्र, त्रिपाठी, पांडेय, दीक्षित, सारस्वत, नौटियाल, सेमवाल, आर्याल, उपाध्याय, वाजपेई, मालवीय, गौड़, आदि-आदि का टाइटल लगा लेने से कोई ब्राह्मण-पृथ्वीके देवता नही हो जाते, ब्राह्मण होने के लिए त्याग और तपस्या करनी पड़ती है ।।
क्योंकि—
पहले जनम पूत का भयऊ, बाप जनमिया पाछे ।
शास्त्रों का अध्ययन करने वाले विद्वान गण बताते हैं कि, चौरासी लाख प्रकार की योनियों में मनुष्य का जन्म होना और मनुष्यों में ब्राह्मण के पथ पर चलने वाले परिवार मे, जन्म लेने वाले का बहुत बड़ा भाग्य होता है, तभी यह अवसर प्राप्त होता है ।।
यह शरीर पहले पुत्र के रूप में जन्म लेता है और इस शरीर में पिता का जन्म तो बाद में होता है ।।
इसी प्रकार ब्राह्मण परिवार के घर में जन्म लेने के बाद, बचपन से ही अपने उस माता-पिता– जो कि ब्राह्मण के पथ पर चल रहे हैं– उनके द्वारा एक-एक पल हर प्रकार की जानकारी जो मिलता है, उस बच्चे के भीतर वही संस्कार बनता चला जाता है— जिसको अंग्रेजी भाषा में जीन के नाम से जाना जा सकता है ।।
मैने अपने शरीर के परि-श्रम दुख-सुख, त्याग-तपस्या के आधार पर अभी तक यह जाना है कि, ब्राह्मण परिवार में जन्मे बच्चे को लोग, बाबा कह करके {बाबा पांव लागूं} प्रणाम करते आए हैं ।
वर्तमान समय में अभी भी ग्रामीण अंचलों में यह मर्यादा यदा-कदा, कहीं-कहीं जीवित है ।।
ब्राह्मण के घर में जन्म लेने के बाद ही लोग {बाबा पाव लागूं} कहते हैं, तो वास्तव में ब्राह्मण के पथ पर चलने वाला जो व्यक्ति होगा,
उसको क्या मिल जाएगा इस प्रकृति से,
इसको मुख से वर्णन नहीं किया जा सकता है ।।

ब्राह्मण की श्रेणी —
प्रातकाल 4:00 से 4:30 बजे बिस्तर छोड़ देना ।
नित्यक्रिया,
संध्या गायत्री
अपने घर मे प्रतिदिन ना सही तो, सप्ताह हमें एक बार अवश्य हवन करना ।।
चींटी, पक्षी, गाय, कुत्ता और देवता को–
प्रतिदिन भोजन कराना
शालीन वस्त्र, पहनना ।
ध्यान रहे ब्राह्मण का केवल सफेद रंग का वस्त्र मान्य है ।
यज्ञ अनुष्ठान में वह वसंती रंग के परिधान धारण कर सकते हैं ।
किसी भी प्रकार का कोई भी मादक पदार्थ का सेवन वर्जित,
गुटखा तंबाकू कुछ भी नही ।।
किसी असाध्य रोग से ग्रसित व विकलांग ना हो ।
ज्योतिषी, व्यापारी, वाहन-चालक, किसी भी प्रकार की नौकरी,
तीर्थ आदि में पैसे के लिए पीछे-पीछे जाकर जनसाधारण को कलावा बांधना,
चंदन लगाना हाथ पकड़ कर कहना कि,
हमसे कर्मकांड करवा लो,
यह सब वर्जित है ।।
वास्तविक रूप से पूजा पाठ करने वाले पुरोहित के रूप में नहीं माने जा सकते ।
उपरोक्त बातें जो लिखी गई हैं *इसका अर्थ है कि, जो व्यक्ति का कहीं किसी भी प्रकार का कोई आय का स्रोत नहीं है और उसने पूजा पाठ करने का किसी ब्राह्मण के साथ रहकर उचित शिक्षा ली है कर्मकांड करने की, तो ही कर्मकांड करने का अधिकारी है,
अन्यथा जो लोग पूजा पाठ करके धन घर में लाते हैं वह लोग यजमान को दुख से निवृत्ति नहीं कर पाते उल्टे उनका इतना अधिक नुकसान होता है कि, उसकी भरपाई किसी भी प्रकार नहीं की जा सकती ।।
जो कर्मनिष्ठ ब्राह्मण है जो पूजा पाठ दक्षिणा पाते हैं,उसमें से वे बुद्धिमान कर्मकांडी ब्राह्मण 10% दान के साथ-सा गायत्री मंत्र का सविधि जाप करके दक्षिणा के साथ आए हुए दुख की निवृत्ति करते है ।।
जिस छात्र ने कठिन तपस्या करके आचार्य, शास्त्री की डिग्री ली है पंडित की पढ़ाई की है, और सदाचरण पर चल रहे हैं, वही लोग कर्मकांड करने के अधिकारी हैं ।।
और जो लोग वेष बनाकर के अनाधिकृत रूप से पूजा पाठ कराने चले जाते हैं वे लोग अधिकारी ब्राह्मणों के पेट पर लात मार कर बहुत बड़े पाप के भागी बनते हैं,

क्योंकि यजमान का भला कर सकने की क्षमताओं में होती नहीं ।
इधर दक्षिणा में दान भी नहीं कर पाते हैं और ना तो गायत्री मंत्र का जप कर पाएंगे दक्षिणा के साथ आए हुए दुख से बचने के लिए ।।
जो भी ब्राह्मण कर्मकांड करने जाएं यजमान को जानू जरूर पूछे कि आपने पहना है कि नहीं नहीं पहना है तो पहना है उसके महत्व को बताएं यजमान के ऊंचाई में ही ब्राह्मण की ऊंचाई होती है कर्मकांड जो भी व्यक्ति करता है उसका जीवन बदल जाना चाहिए आपके कर्मकांड करने से क्योंकि आप सत्य ज्ञान के पुंज हैं पृथ्वी के देवता हैं ।
इसलिए हे ब्राह्मण !! आप अधिक से अधिक जप, ध्यान प्राणायाम करके, अपने को शक्तिशाली बनाओ और समाज का परिचालन करो । यजमानों की शक्ति बढ़ाओ, यजमानों के भीतर श्रद्धा बढ़ाओ और राष्ट्र के गौरव को बढ़ाने के लिए स्वयं खूब तपस्या करो और त्याग करो ।।

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय ।।
यजमान और ब्राह्मण के बीच का संबंध सम्’मान से ही संभव ।।
सम्मान का अर्थ है की जो आप जिस लेवल में है इस लेवल में ब्राह्मण को दक्षिणा दें यदि आप महीने का 15 हजार कमा रहे हैं तो आप उस ब्राह्मण को 500 में ₹1 और मिलकर 501 दक्षिणा दें ।
जो व्यक्ति {दश हजार} महीना कमा रहा है वह 301 रूपया दक्षिणा काफी है । इसी तरह से जो लोग लाखों रुपया महीना कमा रहे हैं वह अपने उस कमाई के हिसाब से दक्षिणा दें ।।
ब्राह्मण के गरीबी से के हिसाब से दक्षिणा ना दें । क्योंकि सम- का अर्थ है बराबर और मान का अर्थ है प्रतिष्ठा ।।
यदि आप अपनी कमाई के में से पैसा कट करके ब्राह्मण को देते है, तो सम्मान कहां हुआ ।। जिनका व्यापार है, जिनका नौकरी है उनकी आय बराबर बनी रहती है, लेकिन ब्राह्मण को बराबर कार्य नहीं मिलता इसलिए वह, आपके आय के बराबर धन पाने पर, उसके हृदय में सुख प्राप्त होता है और जब ब्राह्मण को आपसे, सुख प्राप्त होगा ।
तभी आप के कार्य की सिद्धि होगी ।
और यदि आपने अपने हिसाब से दक्षिणा कम देनी हो तो, इससे अच्छा है कि आप कर्मकांड ना करायें ।।
पुनश्च—
पुरोहित ब्राह्मण को निर्देशित किया जाता है कि, जिस व्यक्ति के, {घर के भीतर} कुत्ते पाले जाते हो,

व{अन्य धर्म के लोगों के ब्यक्ति को भगवान बनाकर}
पूजा की जाती हो, जिन लोगों के भीतर श्रद्धा की कमी देखें जो लोग ब्राह्मण को तुम कह कर बुलाएं,
ऐसे घर में ब्राह्मण पूजा पाठ कराने – करने ना जाएं ।।
इस लेख को पढ़ने के बाद फिर भी कोई गाली देना चाहे तो उसकी {लोक-प्रशंसा} सुनने के लिए हम तैयार हैं ।।

हरि कृपा ।।
मंगल कामना ।।

लेख—
पंडित बलराम शरण शुक्ल
नवोदय नगर, हरिद्वार ।।

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