
धरती करती यही पुकार,
मत करो मुझ पर अत्याचार।
विकास की अंधी दौड़ में,
मत करो मेरा आवरण तार तार।।
हरियाली है चूनर मेरी,
घने वृक्ष मेरा श्रृंगार।
निष्ठुर होकर इन्हें नष्ट कर,
मत उजाड़ो मेरा श्रृंगार।।
विकास की अंधी दौड़ में,
मत करो मेरा आवरण तार तार।।
ऊंचे पर्वत मान है मेरा,
सखी मेरी बहती बयार।
प्रदूषण का विष घोलकर इनमें,
मत करो मुझे यूं बेजार।।
विकास की अंधी दौड़ में,
मत करो मेरा आवरण तार तार।।
बहती नदियां मेरी संतान,
मृदा में बसती मेरी जान।
इनको पहुंचाकर नुकसान,
मुझे मत करो घायल और बेजान।।
विकास की अंधी दौड़ में,
मत करो मेरा आवरण तार तार।।
धरती करती यही पुकार,
मत करो मुझ पर अत्याचार।
विकास की अंधी दौड़ में,
मत करो मेरा आवरण तार तार।।
दीप्ति खरे
मंडला(मध्य प्रदेश)