
जलनिधि के वाष्पित जल से जब ,
जलधर रिमझिम जल बरसाता !
शीतल हरीतिमा की आभा से ,
भूमंडल, आलोकित हो जाता !!
अम्बुद के अमृत बूँदों से,
धरती पुलकित हो जाती !
अन्न-धन,फल और फूलों से,
सबको संतृप्त कराती !!
शस्य श्यामला धरती अपनी,
है दुल्हन सी सज जाती!
तोता, मैना, बुलबुल, कोयल,
सप्त सुरों में गीत सुनाती!!
पावस ऋतु का रूप सलोना ,
सबके मन को,भाजाती!
ललनाएं सज धज कर घर-घर ,
कजरी मिल-जुलकर गाती!!
स्वर्ग से सुंदर वसुधा अपनी,
सब का हिय हर्षाती!
“जिज्ञासु” जन आनंदित कर ,
प्रगति पथ दिखलाती !!
कमलेश विष्णु सिंह “जिज्ञासु”