
ना शब्द मिले,,,ना कलम चलें,,,,,,
कागज के भी ऑसु आए,,,,,,,
कुदरत तेरे आगे तो,,,
समय भी ये रूक जाए।
क्या गलती थी उन मासूमों की,,,
जो अकाल मौत की भेंट चढ़े,,,,,,
सफर भी शुरू नही हुआ था,,,,,,,
मन मे कितने थे, ख्वाब लिए,,,,,,
आत्मा भी अब कांप उठी,,,,,
ऐसा भी मंजर आयेगा,,,,,
दो,पल का अब नही भरोसा,,,
सब यही धरा रह जायेगा।
लाखों-दो या दो करोड़,,तुम
इंसान को क्या ला पाओगे,,,,,,
कीमत जिसकी ,,,जिसके दिल में,,
समय क्या फिर वही लाओगे,,,,,
ये सब मंजर ,,,,
हमें सीखाते,,,,
वक्त का कोई फेर नही,,,,,,
प्रेम के दो शब्द बोल लो,,,,
कुछ भी यहाॅ तेरा -मेरा नही,,,,,
गलती हो,,,
तो माफी मांग लो,,,,
पर
मन में मेल नही रखना,,,,,,
सुन्दर जीवन मिला है,,
हमको,,,,,
बस,
एकता का यही है कहना।
बस,
एकता का यही है
कहना।
एकता शर्मा
कोटा।