
झाँसी की रानी, थी बड़ी सयानी,
बचपन से ही दिखी वीर कहानी।
नन्हीं तलवारें, नन्हीं मुस्कान,
पर मन में था भारत का मान।
कभी गुड़ियों से खेल न रचाया,
घोड़े पर चढ़ रण का सपना सजाया।
शिवाजी जैसे सपने देखे,
शत्रु के मन से भय को रेखे।
जब झाँसी पर छाया अंधेरा,
लक्ष्मीबाई बनी उजियारा सवेरा।
एक नहीं, हजारों से लड़ी,
सच कहें तो आग में भी गड़ी।
आँखों में चमक, ललकार में जोश,
रणभूमि में रानी का था विशेष होश।
बेटे को बाँध पीठ पर प्यारी,
तलवार लिए बढ़ चली सवारी।
गिरी नहीं वो, थकी नहीं थी,
देशभक्ति की रेखा कहीं नहीं मिटी।
आज भी गूंजे उसका नाम,
“लक्ष्मीबाई” — भारत की शान!
डॉ बीएल सैनी
श्रीमाधोपुर सीकर राजस्थान