
न रोग लगे, न शोक सताए,
सच्चा सुख वही जो तन पाए।
महलों में भी चैन नहीं,
यदि शरीर हो पीड़ा से कहीं।
बिन औषधि के जीने की कला,
संतुलित जीवन, यही असली भला।
नींद पूरी, भोजन सही,
तन निरोगी तो चिंता नहीं।
प्रकृति से नाता जोड़ो फिर,
हर दिन बनेगा सुखमय चित्र।
पहला सुख है ये अनमोल थाती,
न हो इससे बड़ी कोई बाती।
(स्वरचित एवं मौलिक रचना)
डॉ बीएल सैनी
श्रीमाधोपुर सीकर राजस्थान