
आप सब सोच रहे होंगे राखी पूर्णिमा तो सुना है ये राखी पंचमी क्या हैं ? हम महेश्वरी समाज के लोग राखी भाद्रपद शुक्ल पंचमी को अपनी रक्षाबंधन मनाते है। क्योंकि इस दिन ऋषि पंचमी होती हैं। महेश्वरी समाज की उत्पति ऋषियों के श्राप से ही हुई हैं । इसके पीछे एक कहानी इस प्रकार प्रचलित हैं।
अनेक वर्षों पूर्व चौहान जाति के राजा खड़क सेन खंडेला नगर में राज्य करते थे। राजा को सकल सुख प्राप्त थे किंतु उनके कोई संतान नहीं थी। एक समय राज्य में भूदेव जगत के ऋषि ब्राह्मणों का आगमन हुआ। राजा ने बहुत ही विनम्रता पूर्वक उनका आदर सत्कार किया। राजा के आतिथ्य सत्कार से ऋषि प्रसन्न हुए और आशीर्वाद दिया । तब राजा ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा जाहिर की। तब ऋषियों ने उन्हें शिव पार्वती की आराधना करे उन्हें पुत्र की प्राप्ति अवश्य होगी। लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी कि राजा का पुत्र 16 वर्ष की आयु तक उतर दिशा में न जाए और ना ही किसी ब्राह्मण ऋषि से द्वेष करे, अगर वह ऐसा करता है तो मृत्यु को जाएगा अन्यथा एक क्षत्र राज करेगा। राजा ने सब स्वीकार कर शिव पार्वती की आराधना करना प्रारंभ किया। राजा की 24 रानियां थी जिसमें चंपावती रानी के गर्भ से पुत्र का जन्म हुआ। पुत्र का नाम सुजान कंवर रखा गया। 14 वर्ष की आयु में 14 विधियों की प्राप्ति कर प्रसिद्ध हुआ। कुछ समय बाद बौद्ध धर्म के प्रवर्तकों ने राज पुत्र को शिव मत के प्रतिकूल शिक्षा दी एवं जैन धर्म अपनाने को कहा। इससे राजपुत्र ने शिवलबन छोड़कर शिव मूर्तियों का खंडन कर दिया और ब्राह्मण ऋषियों का विरोध करने लगा।सुजान कंवर ने सर्वत्र विजय पताका फहरा कर शिव उपासना पर प्रतिबंध लगा दिया।केवल उतर दिशा में उसका जाना प्रतिबंध था। एक समय 72 उमरावों के साथ उतर दिशा में प्रस्थान किया क्योंकि जब अभिमान सर पर चढ़ जाए तो भले बुरे का भेद भुला देता हैं। यही बात सुजान कंवर के साथ हुई। इसमें उतर दिशा में जाकर सूर्यकुण्ड पर खड़े हुए 6 ऋषियों के यज्ञ को विध्वंश किया और उन्हें मारने लगा। तब ऋषियों ने पीड़ित होकर उसे श्राप दिया कि, ” हे बुद्धिहीन पापियों तुम समस्त 72 उमरावों सहित पाषाणवत हो जाओ।” ऋषि के श्राप से सभी तत्काल पत्थर के हो गए। कुछ समय पश्चात शोक में डूबी राजकुंवर की पत्नी 72 उमरावों की पत्नियां को साथ ले ब्राह्मण ऋषियों के चरणों को पकड़कर प्राथना करने लगी कि उन पर कृपा करे एवं श्राप मुक्ति का उपाय बताए। उन्होंने ऋषियों को रक्षा सूत्र बांध की आप हमारी रक्षा कीजिए। ब्राह्मण ऋषियों ने प्रसन्न होकर उन्हें अष्टाक्षर द्वारा शिव पार्वती की उपासना और गुफा में योग साधना करने का उपाय बताया। तपस्या से प्रसन्न हो शिव पार्वती ने राज पुत्र और 72 उमरावों को पाषाण से मानव शरीर दिया। जीवित होकर उन सभी ने शिव जी से कहा कि हमारा सभी राज्य नष्ट हो गया हैं और हम अब राज्य विहीन क्षत्रिय हैं। तब शिव जी ने कहा कि तुम क्षेत्रीय धर्म और शस्त्र त्याग कर वैश्य धर्म एवं पद धारण करो। शिवजी ने उनके शस्त्रों से तराजू का निर्माण किया और कहा जीविका उपार्जन के लिए अब से यही कार्य करो। तब से महेश्वरी समाज की उत्पति हुई थी। इसी कारण महेश्वरी समाज की राखी भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पंचमी को होती हैं लेकिन कई ऐसे लोग है जो आजकल राखी को अपनी सुविधा अनुसार पुर्णिमा वाले दिन भी मना लेते है। अपने समाज की रीति रिवाज को छोड़कर किसी और का अपनाना कहां तक उचित हैं? सभी से अनुरोध है राखी ऋषि पंचमी वाले दिन ही मनाए ओर अपनी परम्पराओं को जीवित रखें।
विद्या बाहेती महेश्वरी राजस्थान