
धरती : जो अरबों खरबों मनुष्यों , असंख्य जीव जंतुओं , वृक्षों , घरों , कल कारखानों तथा असंख्य छोटे बड़े , हल्का भारी वस्तुओं का भार वहन करते हुए भी स्थिर है ।
वृक्ष : जो स्वयं धूप , गर्मी , ठंढी, वर्षा , कोहरा , शीत जैसे संकटों का मार झेलते हुए भी सदैव खुश रहता है , हरा भरा रहता है , हमें शीतलता, छाया , फल- फूल , इमारती लकडियाॅं , जड़ी बूटियाॅं प्रदान करता है । वह अपना फल स्वयं कभी नहीं खाता , वह सदैव परोपकार के लिए ही जीता है । इतना ही नहीं , वृक्ष वायु को शुद्ध करके हमें शुद्ध वायु प्रदान करता है ।
सूर्य : जो अपनी ही अग्नि के ताप में स्वयं को जला जलाकर हमें प्रकाश , गर्मी और उर्जा प्रदान करता है ।
चंद्रमा : जो प्रभाकर की अग्नि जैसे तपते हुए प्रकाश को लेकर उसे शीतल करके हमें रात्रि में शीतल रौशनी प्रदान करता है ।
नदी : जो न ही कभी अपना जल पीती है और न ही कभी अपना जल संचित ही करती है । वह अपने जल से पेड़ पौधों को सींचती है और समस्त जीवों को पिलाती है ।
दीपक : जो स्वयं को जला जलाकर और अंधेरे में रखकर हमारे अंधकार को दूर करने हेतु प्रकाश देता है ।
साधु संत फकीर : जो अपने समस्त सुख सुविधाओं और अपना घर परिवार त्यागकर हमें सत्य मार्ग पर चलने , सत्कर्म करने हेतु प्रेरित करते हैं एवं समस्त प्राणियों के सुख सुविधा , सद्भावना , शांति तथा मोक्ष की प्राप्ति हेतु मंगल कामना करते हैं ।
ये सभी हमारे प्रेरणा के स्रोत और पथ प्रदर्शक हैं । हम इनके आजीवन ही ऋणी हैं । इन्हें सहृदय सादर कोटि कोटि प्रणाम है ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )
बिहार