
!! सीमन्तोन्नयन शब्द का अर्थ तथा संस्कार की महिमा !!
सीमन्तोन्नयन शब्द दो पदों से योग से बना है सीमंत और उन्नयन ।
सीमन्त का अर्थ है स्त्री की माँग अर्थात् सिर के बालों की विभाजन रेखा ।
विवाह-संस्कार में इसी सीमंतमें वरके द्वारा सिंदूरदान होता है और तभी से वह विवाहिता सौभाग्यशालिनी वधू सीमंतिनी और सुमंगली कहलाती है ।
स्त्रियों का यह सीमंतभाग अति संवेदनशील और मर्मस्थान कहा गया है । इसमें पवित्र सिंदूर के सहयोग से जो विशिष्ट भावनाएँ एवं संवेग प्रादुर्भूत होते हैं, वे उसके अखंड दांपत्य जीवनके लिए सहयोगी एवं अभ्युदयकारी होते हैं । सीमंतोन्नयन संस्कार में भी पतिके द्वारा विशेष विधि से गर्भिणी वधूके सीमांत भागका ही संस्कार होता है। बालों को दो भागों में बांटा जाता है, जिसका प्रभाव उस स्त्री तथा उसके भावी संतान पर पड़ता है । इस दृष्टि से इस संस्कार का बहुत महत्व है ।।
!! गर्भसंस्कार या गर्भिणीका संस्कार !!
सीमन्तोन्नयन संस्कार के सम्बन्धमें आचार्यों के भिन्न-भिन्न मत हैं ।
कुछ आचार्यों के मत में यह संस्कार प्रत्येक गर्भ के समय करना चाहिए तथा कुछ आचार्य के अनुसार केवल प्रथम गर्भ में ही होना चाहिए । एक बार संस्कार हो जाने से वह प्रत्येक गर्भके लिए संस्कृत हो जाती है । इसलिए अचार्य पास्कर जी ने अपने गुह्यसूत्र में इसको प्रथम गर्भ में ही करना विधेय है, ऐसा कहा है–
‘प्रथमगर्भे मासे षष्ठेऽष्टमे वा’
{पा० गुह्यसूत्र १।१५।३}
अतः यही मत सर्वमान्य है । इस संस्कार को गर्भधारण से छठे आठवें मास में करना चाहिए । इस संस्कार से सन्तानके मस्तिष्क पर शुभ प्रभाव पड़ता है ।।
सुश्रुतसंहिता में बताया गया है कि सिर में विभक्त हुई पांच सन्धियाँ सीमन्त कहलाती हैं । इन सन्धियों की उन्नति अथवा प्रकाश होने से मस्तिष्कशक्ति उन्नत होती है और इसमें आघात होने से मृत्यु होती है, अतः इस संस्कार के द्वारा सीमन्तभाग को पुष्ट बनाते हुए, गर्भस्थ संतान के मस्तिष्क में आदि को भी बलवान बनाया जाता है ।।
सीमन्त उन्नयन की सामान्य प्रक्रिया—
इस समय गर्भ शिक्षण के योग्य होता है । अतः गर्भिणी सत्साहित्यके अध्ययन में रुचि रखनी चाहिए और सद्विचारों से संपन्न रहना चाहिए । इस संस्कार में वीणा वादकों को बुलाकर उनसे किसी वीर राजा या किसी वीर पुरुषके चरित्र का गान कराया जाता है, ताकि उसका प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर हो और वह भी अत्यंत वीर एवं पराक्रमी हो ।
इस संस्कार में पति घृतयुक्त यज्ञावशिष्ट सुपाच्य पौष्टिक चरु {खीर} गर्भवती को खिलाता है और शास्त्रवर्णित गूलर आदि वनस्पति द्वारा गर्भिणी के सीमन्त {माँग} का पृथक्करण करता है ।
सुवाषिनी वृद्धा ब्राह्मणियों द्वारा गर्भिणी आशीर्वाद दिलाया जाता है ।।
ऊपर सीमंतोन्नयन संस्कार के संबंध में जानकारी आपको दी गई है ।।
सुधीजन इस संस्कार का विधि-विधान–
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साभार– गीता प्रेस गोरखपुर
लेखन एवं प्रेषण–
पं. बलराम शरण शुक्ल
नवोदय नगर, हरिद्वार