
आशीष लेना हो तो उनसे लो ,
जो गरीब असहाय निर्बल होते हैं ।
उनका आशीष लेना ही क्या ,
जो स्वयं सुख चैन की नींद सोते हैं ।।
आशीष लेना हो तो उनसे ले लो ,
जो बुजुर्ग पड़े रहते अक्सर खाट ।
चल- फिर में जो होते असमर्थ ,
और देखते जो स्वयं मौत की बाट ।।
आशीष लेना हो तो उनसे ले लो ,
जो होते हैं साधु संत औ महात्मा ।
ज्ञान होता बहुत सच्चा जिनका ,
रूप होते जैसे वे दूजे परमात्मा ।।
आशीष लेना हो तो निज कर्मों से लो ,
जो होता सदैव ही मन के अधीन ।
आशीष देनेवाला वह आत्मा होता ,
जो सदैव रहता इस तन में विलीन ।।
माता पिता गुरु और ये गरीब ,
बुढ़े साधु संत महात्मा फकीर ।
आशीष होता यह सच्चा इनका ,
जब याद रखो इनका लकीर ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )
बिहार