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गुरु, गुरुवर, सदगुरु और ब्रह्मसत्ता


(स्वरचित काव्य — योगेश गहतोड़ी)
(भाग-2)
(1)
गुरु संदेह मिटाते हैं, चलना हमें सिखाते हैं,
गुरुवर मन को शांत करें, शुभ-संकेत जगाते हैं,
सदगुरु ज्ञान दिलाकर के, सत्य मार्ग पर लाते हैं।
ब्रह्मसत्ता से जुड़ने पर, सब भ्रम दूर हो जाते हैं।

(2)
गुरु दीपक-से जलते हैं, तम हर दिशा से टलते हैं,
गुरुवर प्रेम-सुगंध लिए, जीवन-बगिया में फलते हैं।
सदगुरु मौन में ज्ञान लिए, आत्मा को भी छलते हैं,
ब्रह्मसत्ता जब संग मिले, श्वासें अमृत-सी लगती हैं।

(3)
गुरु धर्मों को सिखलाते, सद्कर्मों को अपनाते,
गुरुवर कृपा-दृष्टि देकर, पथ को सरल बनाते।
सदगुरु मोह मिटा कर के, अंतर से दुख हर जाते,
ब्रह्मसत्ता जब मिल जाती, जीवन में सुख भर जाते।

(4)
गुरु ग्रंथ नहीं, अनुभव से, जीवन पाठ पढ़ाते,
गुरुवर करुणा के धागे, रिश्तों को नव रूप देते।
सदगुरु अंतर की बातों को, बिना कहे समझ लेते,
ब्रह्मसत्ता वह शक्ति है, जिसमें सब लय हो जाते।

(5)
गुरु दुख-सुख की पहचान दें, सहना हमें सिखाते,
गुरुवर देकर विश्वास हमें, मन का बल बढ़ाते,
सदगुरु हमें स्वयं से मिल, आत्मप्रकाश दिलाते।
ब्रह्मसत्ता में डूबे मन जब, फिर लौट नहीं आते।

(6)
गुरु सीमित को विस्तृत करें, दृष्टि बड़ी कर जाते,
गुरुवर क्षमा का पाठ पढ़ा, क्रोध सहज हर जाते।
सदगुरु भीतर ज्योति जगाएं, स्वभाव को सुधराते,
ब्रह्मसत्ता में खो जाने पर, सब द्वैत मिट जाते।

योगेश गहतोड़ी
नई दिल्ली – 110059

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