Uncategorized
Trending

पं० बालकृष्ण भट्ट हिन्दी के युग-प्रवर्तक महापुरुष थे ।


उनके जैसे समर्पित साहित्य-सेवियों के द्वारा डाली गई नींव पर ही साहित्य-पत्रकारिता का भव्य प्रासाद निर्मित हुआ है । उन जैसे नींव के आधारवत् पूर्वजों पर समग्र हिन्दी-जगत को गौरव है और सदैव रहेगा । हिन्दी-अनुरागियों का यह परम कर्तव्य है कि वे अपने पूर्वजों के जीवनादर्श से शिक्षा लेते हुए हिन्दी के विकास-उन्नयन के लिए सदैव कृत-संकल्पित रहें । यही उन समर्पित पूर्वजों के प्रति सच्ची और सार्थक श्रद्धांजलि होगी ।’
उक्त मन्तव्य हिन्दी के भीष्म-पितामह श्रद्धेय पं० बालकृष्ण भट्ट जी की पुण्य-तिथि के अवसर पर चौक स्थित भारती भवन के सभागार में आयोजित स्मृति-गोष्ठी में वक्ताओं का रहा ।
गोष्ठी का प्रारम्भ श्रद्धेय भट्ट जी के चित्र एवं भारती भवन पुस्तकालय के संस्थापक श्री ब्रजमोहनलाल भल्ला की प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ हुआ।
वरिष्ठ पत्रकार अरविन्द मालवीय ने आगतजनों का स्वागत करते हुए कहा कि यह ठीक है कि संख्या की दृष्टि से गोष्ठी लघु है, किन्तु भाव की दृष्टि से पूर्वजों के मान-सम्मान और यशोगान का एक बड़ा सन्देश दे रही है ।
वरिष्ठ पत्रकार एवं ‘साहित्यांजलि प्रभा’ मासिक पत्र के सम्पादक श्री भगवानप्रसाद उपाध्याय ने भट्ट जी को हिन्दी-पत्रकारिता का गौरव-पुरुष निरूपित किया । उन्होंने हिन्दी-पत्रकारिता के इतिहास के क्रम में ‘हिन्दी-प्रदीप’ के अविस्मरणीय अवदान को रेखांकित किया । पं० बालकृष्ण भट्ट की स्मृति का आयोजन कई अर्थों में महत्त्वपूर्ण है । ‘हिन्दी-प्रदीप’ के सम्पादक को याद करना एक सुखद क्षण है । हमें अपने पूर्वजों को नमन करने की संस्कृति को बढ़ाने का संकल्प लेना चाहिए।
कवि-कलाकार, संस्कृति मंत्रालय के सदस्य एवं ‘रोटी’, ‘क्रियेटिव आर्ट’ कृतियों के रचनाकार श्री रवीन्द्र कुशवाहा ने भट्ट जी जैसे पुरोधा की स्मृति-आयोजन में आना अपने लिए सौभाग्य की बात बताया । हिन्दी-साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान् पं० बालकृष्ण भट्ट जी ने अंग्रेज-साम्राज्य में ‘हिन्दी-प्रदीप’ को प्रकाशित कर हिन्दी-जगत् को जाग्रत-ज्योतित कर दिया ।
चिन्तक आनन्द मालवीय के अनुसार यह क्षेत्र युग-पुरुषों का कर्म-क्षेत्र रहा है । इसी क्षेत्र में महामना मालवीय जी, पं० बालकृष्ण भट्ट जी, राजर्षि टण्डन जी तथा छुन्नन गुरु आदि जैसे महापुरुष रहते थे । पं० बालकृष्ण भट्ट जी ने ‘हिन्दी-प्रदीप’ के माध्यम से इतिहास रचा है ।
मालवीय महासभा के पूर्व कोषाध्यक्ष वीरेन्द्र कुमार मालवीय ने भट्ट जी को हिन्दी का समर्पित सेवक निरूपित किया । उन्होंने कहा कि आज हिन्दी के सन्दर्भ में महाराष्ट्र में जो कुछ हो रहा है, वह नितान्त दुखद है । हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है, अतः उसका मातृवत् आदर-सम्मान होना चाहिए।
श्री प्रभुदयाल खन्ना ने अपनी कृति ‘जियें तो जिंये कैसे’ सभी आगतजनों को समर्पित कीं । यह उनकी पहली पुस्तक है, जिसका वे निःशुल्क वितरण कर रहे हैं ।
प्रख्यात समाजसेवी श्री छुन्नन गुरु के परिवार के डा० अमित मोहिले ने कहा कि साहित्य देश-समाज को राह दिखाता है, अतः साहित्यकार वन्दनीय होता है ।
ओमप्रकाश सेठ ने वर्तमान सन्दर्भों पर केन्द्रित अपनी व्यंग्य कविता का पाठ किया ।
संचालन पं० देवीदत्त शुक्ल-रमादत्त शुक्ल शोध संस्थान के सचिव व्रतशील शर्मा ने करते हुए कहा कि पं० बालकृष्ण भट्ट और उनका ‘हिन्दी-प्रदीप’ हिन्दी-पत्रकारिता के गौरव हैं । प्रयागराज का यह गौरव है कि हिन्दी-पत्रकारिता के युग-प्रवर्तक क्रान्तिकारी सम्पादक पं० बालकृष्ण भट्ट जी की साहित्य-साधना का यह नगर केन्द्र रहा । ऐसे गौरव-पुरुष का स्मरण-वन्दन करने का जिसे अवसर मिले, वह सौभाग्यशाली है ।
आभार-ज्ञापन भारती भवन पुस्तकालय के बृजेशचन्द्र खन्ना ने किया ।
गोष्ठी में भट्ट जी के परिवार की श्रीमती रागिनी मालवीय, सन्ध्या मालवीय, सीतापति मालवीय, रामसुमेर कुशवाहा, बनवारीलाल गुप्त सहित बड़ी संख्या में शोधार्थी उपस्थित रहे ।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *