
(स्वरचित दोहे)
आत्मरक्षण मूल बीज है, धर्म-वृक्ष विस्तार।
आत्मरक्षण बिना नहीं, सत्य-धर्म सत्कार॥1॥
आत्मरक्षण दीप वह, जो अंतर में सदा जले।
आत्मरक्षण ही सदा, मोह-भ्रम से हमें तले॥2॥
जब आत्मरक्षण जाग जाए, जागे सत्व महान।
आत्मरक्षण से मिले, निज सत्ता का ज्ञान॥3॥
जब आत्मरक्षण वर्जित हो, अधर्म तम छा जाए।
आत्मरक्षण से जगे, सत्य – दीप मुस्काए॥4॥
संरक्षण के चार आयाम, आत्म-कुल-सम-लोक।
संगठित जब हों सभी, मिटे अधर्म का शोक॥5॥
कुलरक्षण की नींव में, आत्मबोध की चाह।
आत्मरक्षण हो प्रथम, फिर कुल बचे तब राह॥6॥
समाजरक्षण हेतु भी, आत्मबोध हो साथ।
स्वधर्म जागे हृदय में, तब जागे निज जात॥7॥
समिष्टिरक्षण अंत है, सब हित की है चाह।
पर आरंभ आत्म ही, जब निज को लें राह॥8॥
समिष्टिरक्षण राह है, आत्मरक्षा साथ।
आत्मज्योति से जगे, नूतन धर्म प्रवाह॥9॥
आत्मरक्षण प्रथम चरण, सनातन की बात।
साहित्यिक सचेतना से, जगे धर्म की बात॥10॥
योगेश गहतोड़ी
नई दिल्ली – 110059