
जंगली जीव हर उस वृक्ष, पौधे, जानवर और अन्य जीव को कहते हैं जिसे मानवों द्वारा पालतू न बनाया गया हो। जंगली जीव दुनिया के सभी परितन्त्रों (ईकोसिस्टम) में पाए जाते हैं, जिनमें रेगिस्तान, वन, घासभूमि, मैदान, पर्वत और शहरी क्षेत्र सभी शामिल हैं।
वन्य जीव जंगली जीवों की वह श्रेणी है, जो मानव बसेरों से बाहर वनों-पर्वतों में रहते हों। इसके विपरीत बहुत से गिलहरियों, कबूतरों और चमगादड़ों जैसे जंगली जीव वनों से बाहर शहरों में भी बसते हैं।
गिलहरियाँ अक्सर वनों से बाहर शहरों में रहती हैं, लेकिन जंगली जीव ही समझी जाती हैं। बाघ एक प्रमुख वन्य जीव है।
मनुष्यों ने बहुत से जंगली जीवों को विश्व-भर में अपने प्रयोग के लिए पालतू बनाया है, जिसका वातावरण पर गहरा प्रभाव पड़ा है। बहुत सी संस्कृतियों में पालतू और जंगली जीवों में गहरा अन्तर समझा जाता है। अक्सर जंगली जीवों की साधारण और क़ानूनी परिभाषा में केवल जानवरों, पक्षियों और मछलियों को ही मान्यता दी जाती है और वनस्पति, कीट और कीटाणु जगत के सदस्यों को इसमें सम्मिलित नहीं किया जाता।
प्रमुख वन्य जीव-
सिंह, बाघ, हाथी, सियार, लोमड़ी, सूअर, लकडबग्घा, जिराफ, खरगोश, हिरण, बारहसिंघा, चीतल, शेर, घोड़े कुछ प्रमुख वन्य जीव हैं।
विश्व वन्यजीव दिवस 2025 की थीम ‘वन्यजीव संरक्षण वित्त: लोगों और ग्रह में निवेश’ है। यह विषय वन्यजीव संरक्षण प्रयासों को समर्थन देने के लिए स्थायी वित्तीय समाधानों की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
2025 का विश्व वन्यजीव दिवस, वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (सीआईटीईएस) की 50वीं वर्षगाँठ के साथ मेल खाता है, यह दिवस संयुक्त राष्ट्र द्वारा 3 मार्च को मनाया जाता है।
यह दिवस 3 मार्च को मनाया जाता है और इसका उद्देश्य वन्यजीवों और उनके प्राकृतिक आवासों के संरक्षण के महत्व को बढ़ावा देना है, इस दिन को मनाने का निर्णय 1973 में CITES पर हस्ताक्षर करने के उपलक्ष्य में लिया गया था. 2025 का विषय ‘वन्यजीव संरक्षण वित्त: लोगों और ग्रह में निवेश’ है, जो वन्यजीवों के लिए एक स्थायी भविष्य सुनिश्चित करने के लिए वित्तपोषण की कमी को दूर करने और संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए नवीन वित्तीय तन्त्र की आवश्यकता पर जोर देता है, इस विषय पर संयुक्त राष्ट्र ने जोर दिया है। वन्यजीवों के संरक्षण के लिए हमें पर्यावरण संरक्षण और वृक्ष संरक्षण और पोषण तथा रख-रखाव पर ध्यान देना होगा। तभी चारों ओर फिर से हरे-भरे वन और उनमें वन्यजीवों के आने और रहने की संभावनाए वन सकती हैं। जनसंख्या वृद्धि के कारण आवास हेतु कम पड़ती जमीन हेतु वन काटकर नदियों को पाटा जा रहा है और समतल करके रहने और खेती योग्य बनाया जा रहा है। वन हैं तो हम और वन्यजीव हैं, अन्याय हमारा अस्तित्व समाप्त होने में देर नहीं लगेगी। आजकल सबको हर गाँव के पास एक वन्यजीव प्रदेश जरुर होना चाहिए। इससे वन्यजीवों को सुरक्षा और प्राकृतिक वातावरण मनोरम और शीतलहर होगा। पर्यावरण संरक्षण होकर हम समय पर बरषा को बुला सकेंगे।
आलेख संकलन और प्रस्तुति- (विभिन्न स्रोतों से)
पं० जुगल किशोर त्रिपाठी (साहित्यकार)
बम्हौरी, ब्लाॅक, झाँसी (उ०प्र०)