Uncategorized
Trending

नामकरण संस्कार

!! नामकरण संस्कार का महत्व !!

यह समस्त चराचर जगत् नामरूपात्मक है । संसार में जितने भी प्राणी तथा वस्तुएँ हैं, सबका कोई-न-कोई रूप है और कोई-न-कोई नाम है । बिना नाम के वस्तु की पहचान ही नहीं हो सकती । लोक-व्यवहार की सिद्धि बिना नाम के संभव नहीं है । कोई भी अपरिचित व्यक्ति पहले मिलता है तो सर्वप्रथम नाम पूछने पर ही उसे जाना जा सकता है कि कौन है, पिता का नाम निवास स्थानका नाम– इस प्रकार नाम से ही व्यक्ति या वस्तु के बारे में ज्ञान हो पाता है । कल्पना कीजिए की जन्म लिए हुए बालक या बालिका का नाम न रखा जाए तो कैसे उसे पुकारा जा सकता है, पशु पक्षी भी अपना नाम सुनकर उल्लसित उत्कण्ठित होते हैं । नाम की महिमा से अगुण-अगोचर भी सगुण-साकार हो जाता है । भगवान के तो अनन्त नाम हैं, अनन्त रूप हैं ।
आचार्य बृहस्पति बताते हैं कि नाम अखिल व्यवहार एवं मंगल में कार्यों का हेतु है । नाम से ही मनुष्य कीर्ति प्राप्त करता है । इसीसे नामकर्म अत्यंत प्रशस्त है’—
नामाखिलस्य व्यवहारहेतुः शुभावहं कर्मसु भाग्यहेतुः ।
नाम्नैव कीर्तिं लभते मनुष्यस्ततः प्रशस्तं खलु नामकर्म ।।
{वीरमित्रोदय-संस्कारप्रकाश}

स्मृतिसंग्रह में बताया गया है कि व्यवहार की सिद्धि, आयु एवं ओज की वृद्धि के लिए नामकरण संस्कार करना चाहिए—
आचार्य पास्कर ने बताया है कि,
नामकरण संस्कार दसवें दिन की रात्रि की व्यतीत हो जाने पर ग्यारहवें दिन होता है । बालक का नामकरण पिता करता है । कदाचित् पिता ना हो तो पितामह, चाचा आदि भी यह संस्कार कर सकते हैं ।
दसवें दिन तक जननाशौच रहता है । अशौच में नामकरण नहीं होता, अतः अशौच की निवृत्ति हो जाने पर ग्यारहवें दिन नामकरण-संस्कार करना चाहिए ।
कुलाचार के अनुसार नामकरण का नियत समय होने पर भी भद्रा, वैधृति, व्यतीपात, ग्रहण, संक्रान्ति, अमावस्या और श्राद्ध के दिन बालक का नामकरण करना निषिद्ध है ।
नाम कैसा हो— नाम की संरचना कैसी हो, इस विषय में भी गृह्यसूत्रों एवं स्मृतियों को में विस्तार से प्रकाश डाला गया है ।
कि बालक के नाम दो या चार अक्षर युक्त होना चाहिए ।
वीरमित्रोदय-संस्कार में चार प्रकार के नाम का विधान आया है— १~ कुल देवता से सम्बद्ध २~मास से सम्बद्ध ३~नक्षत्र से सम्बद्ध तथा
४~व्यवहारिक नाम, {पुकारने का नाम}
जन्म राशि और पुकार नाम की व्यवस्था—
शास्त्रों में किस कर्म को राशि नाम से करना चाहिए तथा किस कर्म को पुकार नाम से ग्रहण करना चाहिए इस पर विचार करते हुऎ कहा गया है की विवाह में, सभी प्रकार के मांगलिक कृत्यों में, यात्रा के मुहूर्त आदि विचार में तथा ग्रहगोचार की गणना करने में जन्म राशि, {नक्षत्रनाम} का प्राधान्य है । इसी प्रकार देश, ग्राम, युद्ध, सेवा तथा व्यवहारिक कार्यों में नामराशि की प्रधानता है ।

नामकरण संस्कार की बहुत उपयोगिता है मनुष्यका जैसा नाम होता है, वैसे ही गुण भी होते हैं । यद्यपि इसका अपवाद भी मिलता है, किंतु अपवाद से उत्सर्ग का खण्डन नहीं हो सकता । बालकों का नाम लेकर पुकारने से उनके मनपर उस नाम का असर पड़ता है । प्रायः उसी के अनुरूप चलने का प्रयास भी होने लगता है इसलिए नाम में यदि उदात्त भावना होती है, तो बालकों में यश एवं
भाग्यका अवश्य ही उदय संभव है ।।
साभार– गीता प्रेस गोरखपुर
लेख एवं प्रेषण—
पं. बलराम शरण शुक्ल
नवोदय नगर, हरिद्वार

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *