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हिंदी भाषा के वैश्विक होने की पूरी सम्भावना है – संतोष चौबे

साझा संसार फाऊंडेशन की पहल पर, विश्वरंग फाउण्डेशन, नागरी लिपि परिषद दिल्ली व साझा संसार फाऊंडेशन नीदरलैंड के संयुक्त तत्वावधान में “देवनागरी लिपि का वैश्विक परिदृश्य : सीख, पठन-पाठन और व्यवहार” विषय पर ऑनलाइन आयोजन, डॉ हरिसिंह पाल के मुख्य आतिथ्य व श्री संतोष चौबे की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ।
इस आयोजन में डेनमार्क से अर्चना पैन्यूली, लंदन से ऋचा जैन, जर्मनी से शिप्रा शिल्पी, इटली से उर्मिला चक्रवर्ती, गुरुकुल लंदन की संचालिका इंदु बारौट चारण, नीदरलैंड्स से राधिका लाम्बे और ऑस्ट्रेलिया से चार्ल्स एस. थाम्सन ने भाग लिया। इस मंच का सफल संचालन नीदरलैंड्स से अश्विनी केगांवकर ने किया।

श्री संतोष चौबे ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि हिंदी भाषा के वैश्विक होने की पूरी सम्भावना है। अवरोध बाहर नहीं हैं; अवरोध हमारे अंदर हैं। लिपि का सवाल, हमारे व्यावहारिक जीवन का सवाल है, राष्ट्रीय एकता का सवाल है। यह कला, साहित्य एवं संस्कृति के बचाने का सवाल है। लिपि बचेगी तो भाषा भी बचेगी। उन्होंने धीरेंद्र वर्मा के निबंध का पैरा पढ़कर बताया कि देवनागरी लिपि के संकटों का अपना इतिहास है। लेकिन जनता आज भी बहुत गहरे से लिपि से चिपकी है। विश्वरंग की 65 देशों से जुड़े होने की गतिविधियों को रेखांकित करते हुए आगे बताया कि हिंदी भाषा विश्वरंग के मूल में है।

डॉ हरिसिंह पाल ने नागरी लिपि परिषद के कार्यों पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए नागरी लिपि की वैश्विकता पर चर्चा की।

आयोजन के संयोजक व साझा संसार फाऊण्डेशन के अध्यक्ष रामा तक्षक ने अपने स्वागत वक्तव्य में कहा कि प्रवासी भारतीय परिवार अपनी नयी पीढ़ी को देवनागरी लिपि सिखाएँ ताकि नयी पीढ़ी अपनी दादी नानी से बतिया सके।

आयोजन का आरम्भ शशि त्यागी द्वारा देवनागरी लिपि वंदना पाठ से हुआ। उसके बाद ऋचा जैन कहा कि यदि माता पिता बच्चे को देवनागरी लिपि सिखाने पर ध्यान देते हैं तो बच्चा जल्दी सीख जाता है। हिंदी भाषा का परिवेश देवनागरी सीखने में बच्चे के लिए बहुत मददगार साबित होता है। हाँ,
विदेशियों के लिए, उच्चारण की दृष्टि से देवनागरी लिपि थोड़ी कठिन जरूर है।
डेनमार्क से अर्चना पैन्यूली ने जोर देकर कहा कि देवनागरी एक आकर्षक लिपि है। हम सबको देवनागरी लिपि के वैश्वीकरण पर बल देना चाहिए।
शिप्रा शिल्पी ने उदाहरण देकर बताया कि विलियम जोन्स के अनुसार देवनागरी लिपि सरल, सुव्यवस्थित और वैज्ञानिक है। देवनागरी लिपि सीखकर ही हिंदी भाषा को आत्मसात करना सम्भव है। हिंदी भाषा को देवनागरी लिपि में ही सिखाया जाए।
गुरुकुल लंदन की संचालिका इंदु बारैठ ने कहा कि देवनागरी लिपि का चार्ट व अलग से पाठ्यक्रम हो। माता-पिता को विदेश में रह रहे बच्चे के मन में, देवनागरी लिपि व हिंदी भाषा के प्रति ललक पैदा करनी पड़ेगी। हिंदी भाषा गुरुकुल लंदन में भी पढ़ाई जाती है। देवनागरी लिपि को सीखने से भारतीय सांस्कृतिक स्रोत खुलते हैं।
राधिका लाम्बे ने कहा कि देवनागरी मातृभाषा का सगुण स्वरूप है। यह केवल लिपि ही नहीं अपितु भारत की ज्ञान परम्परा, दर्शन और विचार का प्रतीक है।
उर्मिला चक्रवर्ती ने बताया कि विदेशी छात्रों को देवनागरी सिखाते समय हिंदी में बात करें। साथ ही साथ छात्रों को हिंदी सिखाते समय, फिल्म, संगीत, व्यञ्जन, आयुर्वेद व योग आदि के माध्यम से भारतीय संस्कृति से परिचय करवायें। ताकि छात्र देवनागरी लिपि सीखने के लिए जिज्ञासु बने रहें।
ऑस्ट्रेलिया से चार्ल्स एस. थाम्सन ने कहा कि मैं हिंदी और संस्कृत का प्रेमी हूँ। मुझे, दिल्ली में, जबरन हिंदी बोलनी पड़ती है। हिंग्लिश को हटाओ। हिंदी के कार्यक्रम का बैनर, सूचना आदि सब हिंदी में हो।
संगोष्ठी में, मॉरीशस से डॉ सोमदत्त काशीनाथ, उज्बेकिस्तान के डॉउल्फत मुहीबोवा, मेलबर्न ऑस्ट्रेलिया डॉ सुनीता शर्मा, नेपाल से प्रोफेसर अजय कुमार ओझा, दुबई से श्री नितिन उपाध्ये, अमेरिका से सुषमा मल्होत्रा और दीप्ति अग्रवाल, कोहिमा नागालैंड के डॉ बीपी फिलिप, गुवाहाटी असम की डॉ नंदिता राजवंशी और डॉ थोसो कॉपी, चेन्नई तमिलनाडु के एस अनंत कृष्णन, मदुरई के प्रोफेसर डेनियल राजेश, तिरुवनंतपुरम केरल की डॉ सी जे प्रशन्न कुमारी, विशाखापट्टनम की डॉ विजय भारती जेल्दी, भुवनेश्वर उड़ीसा के हरिराम पंसारी, नागपुर के डॉ कमल किशोर गुप्ता, डॉ अनीता वानखेड़े और डॉ मधु भंभानी, अहमदाबाद से डॉ वर्षा सोलंकी और डॉ सुनील मानस, जालंधर पंजाब की डॉ वीणा विज उदित, बीकानेर राजस्थान के डॉ रामचंद्र स्वामी, पटना की डॉ शिप्रा मिश्रा, सोनी स्वाति, रायपुर छत्तीसगढ़ के डॉ मुक्ता कौशिक, अवंती शर्मा और डॉ रतिराम गढ़ेवाल, इंदौर की डॉ कला जोशी, उत्तराखंड की सरोजिनी नौटियाल, डॉ निशा शर्मा और राकेश, वर्धा से डॉक्टर पिया माली, कोडरमा झारखंड से डॉ अशोक अभिषेक, डॉ बृजेश कुमार पाल, जयपुर से कृष्ण वीर सोलंकी, दिल्ली से प्रोफेसर मनोज कैन, राजीव कुमार पाल व डॉक्टर मोहन गुना आदि उपस्थित थे।

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