
(स्वरचित कविता )
(1)
सदियों से गूँजता प्रश्न यही, क्या है प्रभु का रूप,
क्या वह बस मंदिरों में बसता, या है हर दिल की धूप।
(2)
ऋग्वेद कहे – “सत्य तो एक है”, नाम भले हज़ार,
कभी वो शिव, कभी श्रीराम, ब्रह्म ही हर अवतार।
“एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति” — ऋग्वेद 1.164.46
(3)
ईशावास्य उपनिषद बोले, देख जगत के भाल,
हर अणु-रेणु में वह बसा है, जीवन का आधार।
“ईशावास्यमिदं सर्वं” — ईशावास्य उपनिषद् 1.1
(4)
गीता की गूँज सुनो अर्जुन, कृष्ण ने ज्ञान दिया,
“मैं ही हर प्राणी के भीतर, आत्मा बनकर जिया।”
“अहमात्मा गुडाकेश” — गीता 10.20
(5)
श्वेताश्वतर ने स्पष्ट कहा, है एक ही देव महान,
जो हर जीव में अंतर्यामी, नित छिपा अनजान।
“एको देवः सर्वभूतेषु गूढः” — श्वेताश्वतर उपनिषद 6.11
(6)
जीव न कोई साधारण तत्त्व, है ब्रह्म का ही अंश,
सूरज से निकली रश्मि है वो, वही दिव्य प्रकाश।
“ममैवांशो जीवलोके” — गीता 15.7
(7)
“अहं ब्रह्मास्मि” मंत्र कहे, जब मिट जाए अहंकार,
तब समझो तू ही ब्रह्म है, नहीं कोई दीवार।
“अहं ब्रह्मास्मि” — बृहदारण्यक उपनिषद् 1.4.10
(8)
कठ उपनिषद कहता है, जो देखे एक ही आत्म,
वही है ज्ञानी, वही है मुक्त, वही पहुँचे ब्रह्म।
“यः पश्यति स पश्यति” — कठ उपनिषद् 2.1.11
(9)
“तत्त्वमसि” की गूँज सुनाता, आत्मा ब्रह्म समान,
श्वेतकेतु से जो कह गये, वो है शाश्वत ज्ञान।
“तत्त्वमसि श्वेतकेतो” — छान्दोग्य उपनिषद् 6.8.7
(10)
ना दूर कहीं वो रहता, ना मंदिर में सिमटा है,
हर साँस में उसकी गूँज है, हर दिल में बसा है।
हम अंश हैं उसी ज्योति के, वो परमज्योति प्रभु है,
जो खुद को जाने, वही कहे – “अहं ब्रह्मास्मि” सच है।
योगेश गहतोड़ी (ज्योतिषाचार्य)
नई दिल्ली – 110059