
स्वर्ण हिरण, सीता अपहरण, जटायु मिलन, सुग्रीव मिलन, बाली युद्ध, राक्षसों का ऋषियों की तपस्या में विघ्न, शबरी मिलन।
मौलिक लेखन,,संदीप शर्मा,
देहरादून उत्तराखंड से।।
वास्ते:- साहित्यिक कृति।।
राम का वन ,हर और गमन,
लक्ष्य था पीछे,विधि का संगम,,
मारीच था मृग स्वर्ण का बन आ गया,
राम के लिए छल, जो परिस्थिति से रचा गया,
किया आकर्षित दिखा अपनी देह
यही देता संदेश इक यह
माया का हर और प्रबल है वार,
बचना जो राम जी से करते हो प्यार।।
वही हुआ जो फिर था संदेह,
सिय की जिद्द चाहिए था मृग ही वह,
राम जी मुस्काए और चल दिए, आप
मारीच को उदार करने को हिय ताप।।
चले तो गए जबकि थे जानते,
युक्ति विधि की सब थे वे पहचानते,
तभी ह्रदय मे लिए संदेह
लक्ष्मण को कह गए, रखे वह ध्येय।।
इधर मारीच ने की नाम लक्ष्मण की पुकार,
हो गया वध, शरीर का हुआ उदार,,
सिय ने सुनी जब यह करुण पुकार,
कहा लक्ष्मण से,जाओ राम के पास,।।
सब विधि का ही था किया धरा
जिसने बिसारा, राम वह कही का न रहा।।
प्रपंच जो रचा था ,हुआ वह समवेत
आ पहुँचा रावण, बना साधू का वेश ,
किया सीता हरण उड़ा चला ले आकाश,
जटायु तब आए जब देखा सिय रावण पास।
किया युद्ध फिर रावण से भंयकर
बचाना चाहते थे ,
सिय माई को कर तन अर्पण।।
पर यहा तो विधि का भी था प्रबल वार
हो गए जटायु निस्तेज, रावण वार,
रावण ले उड़ा सीता ,को लंका
दक्षिण का क्षेत्र, स्वर्ण सी शंका।।
पाकर न सीता मन मे लिए क्लेश,
घूमे राम लक्ष्मण, समस्त वन प्रदेश
जब जटायु से हाल सब दिया गया सुनाया
अंत उसका भी किया सुगम कितना बनाया।।
अब कौन देश, कौन वन कौन प्रदेश ,
ऋषि के आश्रम पहुँचे अयोध्या नरेश,
मिले जब शबरी से जो लिए थी राम ह्रदय देश,
अद्भुत मिलन अद्वितीय मन प्रदेश,
झूठे ही लगी वह बेर राम को खिलाने,
हिय मे राम , राम हिय की गति जाने।।
वही से चले मिलने सुग्रीव के रण,
बैठा था वह भी भाई से लिए क्लेश तन,,
उसके भी मन की गति को लिया जब पढ़,
हनुमान हुए वहा प्रबल अनुचर।।
अब राम राम राम राम हो रही,
हनुमान जी की बस बात हो रही,
उनमे थी शक्ति जबकि अपार,
तब भी की भक्ति उससे भी पार,
किया इसी दौरान, कई राक्षसों का संहार,
बाली भी था इसी रण की कतार,,
ऋषियों के कल्याण को,लिए सब आस
राम थे हुए, वन के वशी वास।।
देखे रामायण की हर इक बात,
जो रखी है छिपा के ह्रदय के पास,
समझाती है वो विधि बलवान,
प्रभु भी उसमे निधि के खान।।
सब श्रम व तप वह भी करते,
जब जब शरीर, मानव का धरते।।
रावण राम की थी राशि एक
पर दोनो के कितने अलग थे विवेक,
यही रामायण का प्रतिफल है,
राम से होइए, यही कर्म फल है।।
राम राम बस भजिए राम,
राम ही स्नेह राम ही प्रधान,
राम की ही महिमा हर और अपार,
बिसराना न यह राम रखना याद।।
जितनी परिस्थिति बताई थी लघुचित्र खींचने का प्रयास किया है।।
संदीप शर्मा।।देहरादून उत्तराखंड
साहित्यिक कृति के हेतु अनुपम भेंट