
(भाव पल्लवन)
जीवन एक रहस्यमयी यात्रा है, जिसमें अनेक अनुभव, संघर्ष और सुख-दुख छिपे होते हैं। कभी – कभी हमें बिना अपेक्षा किए ही ऐसे मूल्यवान उपहार मिल जाते हैं, जिनकी हमने कल्पना भी नहीं की होती और दूसरी ओर, जब हम बार-बार याचना करते हैं, तो वह भी नहीं मिलता जिसकी हमें आवश्यकता है। यही अनुभव जब लोकजीवन में बार-बार घटित हुआ, तब एक सरल लेकिन गहन कहावत जन्मी— “बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख।” यह कहावत केवल शब्द नहीं, एक जीवन-दर्शन है, जो यह सिखाती है कि निष्काम कर्म, आत्मबल और धैर्य के साथ किया गया प्रयास ही सच्ची सफलता दिलाता है।
इस कहावत का भाव यह है कि जब मनुष्य बिना किसी स्वार्थ या अपेक्षा के निष्ठापूर्वक अपना कर्म करता है, तब प्रकृति, समय और भाग्य स्वयं उसे सम्मान, प्रेम और सफलता रूपी “मोती” प्रदान करते हैं। वहीं, जो व्यक्ति केवल याचना करता है, वह चाहे प्रेम माँगे, सम्मान या सहायता—अक्सर अपमान, निराशा और उपेक्षा ही पाता है। माँगना स्वयं में एक कमजोरी को दर्शाता है, जबकि बिना माँगे जो मिलता है, वह व्यक्ति के आत्मबल और सच्चे कर्म का फल होता है।
यह कहावत भारत के संत-महात्माओं और लोकजीवन की अनुभूतियों से उपजी है। ग्रामीण जीवन में जब लोग कर्म करते-करते थक जाते थे, लेकिन अंततः उन्हें सफलता मिलती थी, और वहीं जो केवल दूसरों पर निर्भर रहते थे, उन्हें बार-बार असफलता का सामना करना पड़ता था—तब इस कहावत का रूप प्रकट हुआ। यह आत्मनिर्भरता, स्वाभिमान और श्रम की महत्ता को दर्शाने वाली एक सीधी, सच्ची सीख है।
मनुष्य के जीवन में यह कहावत अत्यंत उपयुक्त है। जब वह स्वयं पर विश्वास रखता है और अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाता है, तब जीवन उसे वो अवसर और सुख देता है, जिनका वह केवल स्वप्न देखता था। इसके विपरीत, जब वह केवल याचना करता है और प्रयास नहीं करता, तो उसका आत्मबल क्षीण होता है और सम्मान भी घटता है। इसीलिए यह कहावत हर मनुष्य को सिखाती है कि अपेक्षा और याचना से दूर रहकर आत्मनिर्भर और कर्मशील बनो।
वेद-शास्त्रों में भी इस कहावत का भाव निहित है।
भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं— “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।” अर्थात् केवल कर्म करो, फल की चिंता मत करो। यजुर्वेद में कहा गया है— “तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा।” यानी त्यागपूर्वक भोग करो, लोभ मत करो। यह सभी उपदेश इसी सत्य को दर्शाते हैं कि जो व्यक्ति निष्काम भाव से कर्म करता है, उसे ईश्वर भी उसका श्रेष्ठ फल प्रदान करता है—बिलकुल वैसे ही जैसे बिना माँगे मोती मिलते हैं।
अंततः, इस कहावत का मूल संदेश यही है कि जीवन में सच्चे फल पाने के लिए माँगना नहीं, कर्म करना आवश्यक है। माँगने से अपेक्षा जन्म लेती है और अपेक्षा से निराशा। लेकिन जब हम बिना किसी लालच या स्वार्थ के कार्य करते हैं, तो जीवन स्वयं हमें वह दे देता है, जो वास्तव में हमारे लिए श्रेष्ठ होता है। “बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख”—यह एक साधारण-सी पंक्ति नहीं, बल्कि जीवन को समझने और जीने का अद्भुत सूत्र है।
योगेश गहतोड़ी (ज्योतिषाचार्य)
नई दिल्ली – 110059