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मोरपंख, रंग और बाँसुरी

बिखरा हुआ गुलाल ओर चहुँ,
नारंगी अरु पीला है।
संग में नारंगी केशर का,
रुप ये सुरुचि रंगीला है।।

मोरपंख, मुरली हैं संग में,
रंग विविध छिटके भू पर।
सुन्दर बड़ी सजीली लगती,
भू-आँगन शोभा भू पर।।

मोरपंख है सजग बनाता,
सभी कार्य कर हो सक्रिय।
जीवन लक्ष्य पाओगे जल्दी,
रहो एक पल न निष्क्रिय।।

होली जैसे रंग बिखेरों,
सबके जीवन में जाकर।
हो बसन्त हर पल जीवन में,
खुशियाँ छायें सब आकर।।

जीवन हो रंगीन सदा ही,
रहे सनातन सी खुशियाँ।
अपने उर में झाँकी लख लो,
रमा ईश, देखो दुनियाँ।।

कैसी नाच रही है हर पल,
इन विकार के हो वश में।
जग में रहो, अलग हो जग से,
ज्यों रहते मुनि अपयश में।।

सुख हो या दु:ख, रात-दिवस हो,
चाहे सन्ध्या मतवाली।
या प्रभात हो, निखरा उज्जवल,
झूम रही गेहूँ बाली।।

हर पल रहो एक सा,आनन,
पर तेरे मुस्कान हो।
गाते, हँसते और नाचते,
जीवन का अवसान हो।।

कौन भला फिर दु:ख दे तुमको,
यही बाँसुरी कहती है।
मन नहीं विकार बसाओ,
ध्वनि मोरपंख से बहती है।।

आनन हो चमकीला तेरा,
मँहकें हरपल दिन सारे।
रजनी तम से हीन सदा हो,
हों शशि संग उड़गन न्यारे।।

हर पल हो प्रभात नित नूतन,
अलग-अलग हों फूल खिलें।
डाल-डाल पर तोता बोले,
सब हर्षित हो सदा मिलें।।

करे कर्म अपना, हो अकर्ता,
भक्ति, ज्ञान, वैराग्य रमे।
करें सनातन की रखवाली,
जीवन पथ न कभी थमे।।

मुरली शान्ति सन्देशा देती,
रहो मगन खुश निज उर में।
हर पल रहो सजग व सक्रिय,
मिटें विकार जो, पल-भर में।।

औरों को भी ये शिक्षा दो,
जीवन औरों हित अर्पण।
औरों को सन्देश कर्म का,
दें हम, हैं जीवन दर्पण।।

यही मधुर सन्देश कृष्ण का,
ये ही मेरा है सन्देश।
कर्मण्येवाधिकारस्ते,
कहता सदा यही मम देश।।

रचनाकार-
पं० जुगल किशोर त्रिपाठी
बम्हौरी,मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)

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